गैगमेशाय नमः॥ रामचन्द्रिका सटीक ॥ वन्दना॥ कवित्त ॥ कुंडलित शुण्ड गण्ड गुंजत मलिंदझुण्ड बन्दन विराजै मुण्डू अदभुतगति को । बालशशिभाल तीनि लोचन विशाल राजै फणिगण- माल शुभसदन सुमति को ॥ ध्यावत विनाहीं श्रम लावत न बार नर पावत अपार मोद भार धनपति को । पापगन मंदन को विधन निकंदन को ठो याम चंदन करत गनपति को १ स०॥ जिनको अवलोकतहीं मनरंजन कंजन की रुचि दूरि बहैये । मधुपालिन मालिन की द्युतिशालिन प्रालिन दामन के मनठेथे ॥ निधि सिद्धि अशेष के धाम सदा सुख पूरण पूरण पुण्य न पैये । पदवन्दन कै गिरिजापति के रघुनन्दन राम की कीरति गैये २ ० ॥ तीन्यौरूप तेरेई प्रभावनि त्रिदेव उतपति प्रतिपाल मलैनिज गति कीजिये । नारद गणेश व्यास बालमीकि शेष आदि तव कृत पूरी लोक लोक यश लीजिये ॥ सागर अपार हौं चहत पैरि पार जायो जग उपहास के प्रकाशमय भीजिये । शारदा भवानि कहौं जोरि युगपानि जन जानकीप्रसाद पै कृपाकी कोर दीजिये ३ दोहा । उत वरणन रघुवर सु. यश इत मम प्रणमतिपाल ॥ ताते पवनकुमार को करौं भरोस विशाल ४ बारबार वन्दन करौं गुरुचरणन सुखपाइ ॥ निज शिक्षा अंजन हृदय दियो अदृष्ट देखाइ ५ कवित्त ।। दामिनीसी दमकति पीतपट भांति हीराहार वक- पांतिको प्रकाश धरियत है । जुगुनू से भूषण जवाहिर जगत सुनि शबदम- यूर साधु मोद भरियत है । जानकीप्रसाद जग हरित करन मीठे बैन रस बैरी ज्यों जवासे जरियत है। राजसभा विपद विराजै छविधाम नित राम घनश्याम को प्रणाम करियत है ६ षट्पद ॥ परमप्रीति सिय जासु संग दामिनिसम सोहै । शीशमुकुट बहुरंग अंग सुरधनुछवि रोहै ॥ कौंधनि | हँसनि सुबैन वारि जगहित बरसावहिं । निरखि संतजन मोर जोर जय | शोर मचावहिं ॥ मन चतुर किसान विचारि करि नहिं उपाय देख्यो वियो। घनश्याम राम उरानि करि स्त्रमातिशालि सिंचन कियो ७
पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/२
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।