१६४ रामचन्द्रिका सटीक । मदोदरि त्यों तिय आई सबै ३ कोलाहल मदिर मांझ भयो।मानो प्रभुको उड़ि प्राण गयो। रोवै दशकठ विलाप करै । कोऊन कहूं तन धीर धरै ४ रावण-दंडक ॥ श्राज मादित्य जल पवन पावक प्रबल चदानंदमय ताप जगको हरौं । गान किन्नर करहु नृत्य गंधर्वकुल यक्ष विधि लक्ष उर यक्षकर्दम धरौं । ब्रह्मरुद्रादिदै देव त्रैलोकके राजको जाय अभिषेक इद्रहि करौं । आजु सिय रामदै लक कुलदूषणहिं यज्ञको जाय सर्वज्ञ विप्रन वरौं ५ महोदर-तोटक ॥प्रभुशोक तजौतन धीर धरो। सक शत्रु वधो सो विचार करो। कुलमें अब जीवत जोरहिहै। सब शोकसमुद्रहि सो बहिहै ६॥ दुःखको निधान कहे बड़ो दुःख १ रावरे खिनके रहिवे को घर कदोरियो काहे केशादि पकरि निर्दय सचिषो २ । ३ । ४ इद्रजीत के मरे रावण' | बड़े दु खसों सयुक्त? ऐसे विलाप वचन कहत भयो कि जो इंद्रजीत मरयो तो मोहू मरतही हौं तासों मेरे डरसों जे बातें जे जन नाही करत रहे ते सब भयको छोडिकै आपने आपने भाये काज करौ कपूर औ अगरु श्री कस्तूरी श्री ककोल मिलाइ यक्षकर्दम होत है सो यक्षनको अतिप्रिय है अंगन में लेप करत हैं " कर्पूरागुरुकस्तूरीककोलैयक्षकर्दम इत्यमरा" औ सीताराम मिलिकै कुलदूषण विभीषणको लंका दैकै सर्वश बामणन को यज्ञको निवरो कहे अवकाश देहिं ५ अतिदुःख में धैर्य के वचन कहियो सचिनारा महादर पदोदरी धीर धराइब के वचन कहता है जा उपाय । सो शपशे राक कहे सके प्रथ पत्र माग्गेजाग सो दिनार करी राके | गरेको गोश ताके समुद्र में बहो करिहे ६ ॥ मदोदरी-चौपाई ॥ सोदर भयो सुतहितारी। को गहिहै लकागढ भारी । सीतहि दै रिपुहि संहारो । मो- हति है विक्रमबल भारो ७ रापण । तुम अब सीनहि देहु १- पूरागुरकस्तूरीकयोलघराणानि च । एकी तमिद सर्व गक्षम इष्यत इति व्याडि ॥
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