१६२ रामचन्द्रिका सटीक । लोकहारी । भयोलकही मध्य आतंक भारी २६ दोहा॥ तबहीं गयो निकुभिला होमहेत इंद्रजीत ॥ कह्यो तहां रघुनाथ सों मतो विभीषणमीत ३० चचरीछद । जोरि अ- जलिको विभीषण रामसों बिनती करी।इद्रजीत निकुभिला गयो होमको रिसजीभरी ॥ सिद्ध होम न होइ जौलगि ईश तौलगि मारिये । सिद्ध होहि प्रसिद्ध है यह सर्वथा हम हारिये ३१ दोहा ॥ सोई वाहि हते कि नर वानर ऋक्ष जो कोह॥ बारह वर्ष क्षुधा तृषा निद्रा जीते होइ ३२ चंचरी छंद ॥ रामचन्द्र बिदा करोतब बेगि लक्ष्मणवीर को। त्यों विभीषण जामवतहि सगभगद धीरको॥ नील लै नल शरी हनुमन अतक ज्यों चले।वेगि जाइ निकुभिलाथल यत्रके सिगरे दले ३३॥ गालक्ष आदिपदते प्रायुध जानो पनै यह मुग्वे गुडमाली गहादेवरा दोहा क्षेपण है निकुमिना राक्षम के देरनन को स्थान वल सों युक्त है तामें यारि उद्रजीत अजय होन रमो है ३० । ३१ ॥ ३२ ॥३३॥ जामवतहि मारिदै शर तीनि अगद छेदियो । चारि मारि विभीपणे हनुमन पच सुधियो ॥ एकएक अनेक वानर जाइ लक्ष्मण सो भिखो । अध अधक युद्ध ज्यों भर गों नुखो भाही हम्बो ३४ गीतिकाछद ॥ रण इद्रजीत अजीत लक्ष्मण अस्त्रशस्वनि सहरै । शर एकएक अनेक मारत खुद मदर ज्यों परै ॥ तव कोपि राघव शत्रुको शिर वाण तत्क्षण करधखो । दशरुष स यहि को कियो शिर जाह अजलि में पलो ३५ रण मारि लक्ष्मण मेघनाददि पन्शन वजाग्यो । कहि साधु साधु समेन इदहि देवता सब पाइयो। कल मागिये वरवीर सत्वर भक्तिश्रीरघुनाथकी।
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