पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/१९०

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१८८ रामचन्द्रिका सटीक। वेदविहित घव्यादि बिताइ अमगल करत हैं अथवा शत्रुसों का द्रव्य पाइ | मारणादि के लिये राशि नाम बतावत है औ मंत्री कृतघ्नी कहेते स्वामी को त बिसारि शत्रुसों मिलि राज्य छोड़ा नौ मित्र अमित्र कहे हृदयमों भलो न चाहै काहेते का गूढ़मंत्र कहौ सो शत्रुपास पहुँचावै ये पांचों इन पांचहुन दोष सहित सेवन योग्य नहीं होत यासों या जनायो कि तुम राजा हो तुमें ऐसो काम साधन न चाहिये जासों ईश्वर जे रामचन्द्र हैं सिनकी स्त्री को हरिल्याये हौ १० वामी वाममार्गी कुपुरुष कहें पुरुषार्थ रहित किंपुरुष कहे कुछ है पुरुषकी आकृति जिनकी काइली रोगी दैववादी कहे जे भाग्य भरोसे रहत हैं याहू में या जनायो कि तुमको ऐसो काम साधन न चाहिये ११ ॥ निशिपालिकाछंद ॥ वानर न जानु सुर जानु शुभगाथ । मानुष न जानु रघुनाथ जगनाथ हैं ॥ जानकिहि देहु | करि नेहु कुल देहु सो । आजु रण साजु पुनि गाजु हॅसि मेहु सो १२ रावण-दोहा ॥ कुंभकर्ण करि युद्ध के सोइरहौ घरजाइ ॥ वेगि विभीषण ज्यों मिल्यो गहो शत्रुके पाइ १३ |मदोदरी ॥ इंद्रजीत अतिकाय सुनि नारांतक सुखदाय । मेयनसों प्रभु झातहै क्यों न कही समुझाय १४ चचलाछद॥ देव कुभमण के समान जानिये न मान । इद्र चन्द्र विष्णु रुद्र ब्रह्मको हरेउ गुमान || राजकाज को कहै जो मानिये सो प्रेम |पालि। कैबली न सोचले न कालकी कुचालिचालि १५॥ पुल औ देहसों ह करि जानकी को देहु गह कदि गा जनायो कि न हो ना रामचन्द्र नुम्हारे कुलके सहित नुम्हारो नाश गरि है १२ कारि | कहे करौ १३ झुकत कहे रिस करत है भैपनसों बहुपयन कहि या जनायो कि एक भाई विभीषण समुझावन लाग्यो ताको लान माखो अब वैसेही कुमाणे सो रिम करत हैं १४ देव रारणको राघोपन है जो बात भार्ण कान है तो रागके पाज के हितको कहत है ताहि प्रेमको पालि के कहे रित करि के गानिये अर्थ सीताको दे रामचन्द्रसों दिन करी काहेते काल