पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/१९

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१६ रामचन्द्रिका सटीक । जे इंद्रसहायक कामादि हैं तिन् को गनै अर्थ कि अनेक हैं सेनापति स्वामि- कार्तिक औ बुधजन चन्द्रपुत्र जनपद इहां स्वरूपको वाची है औ मंगल भौम औ गुरु बृहस्पति औ गण कहे गणदेवता “आदित्यविश्ववस- वस्तुषिता भास्वरानिलाः । महारानिकसाध्याश्च रुद्राश्च गणदेवता इत्य- मरः ॥" औ मन में बुद्धि है घनी जिनके ऐसे धर्मराज कहे यमराज हैं बहुशुभयुक्त हैं मनसाकर कहे कल्पवृक्ष औ करुणामय कहे विष्णु औ सुर- तरंगिणी आकाश गंगा इन सबकी शोभासों सनी है अर्थ ये सब बसत हैं यामें अयोध्या कैसी है कवि काव्यकर्ता बाल्मीकि सदृश औ विद्या चतुर्दश " अङ्गानि वेदाश्चत्वारो मीमांसान्यायविस्तरः। पुराणं धर्मशास्त्रं च विद्याश्चैताश्चतुर्दश ।। इति मनुः" अथवा धनुर्विद्यादि तिनके धर्ता औ सकल कहे चौंतठिहू कलेनके धर्ता औ राजराज कहे बड़े राजाते वरवेष सों बने हैं अनेक राजा राजा दशरथ की सेवामें हाजिर पुरीमें बसे रहत हैं औ सुखदायक गणपति कहे यूथप औ लायक श्रेष्ठ पशुपति गोपालादि अथवा गजादि औ सहायक कहे जे संबकी सहाय करत हैं ऐसे जे शूर योधा हैं तिन्हें को गनै बहुत हैं औ सेनापति चमूनाथ बुधजन पंडित श्री मंगल कहे मंगलपाठी औ गुरुगण वशिष्ठादि अथवा मंगलकर्ता जे गुरुगण वशिष्ठादि हैं औ मनमें बुद्धि है घनी जाके ऐसो धर्मराज कहे न्यायदर्शी हैं कोतवालेति औ बहुत प्राणी शुभ जो मनसा मनोमिलाप है ताके करन- हार हैं अर्थ मनोरथके दाता हैं औ वहुन करुणामय कहे दयाशील हैं औ सुरतरंगिणी सरयू इनकी शोभासों सनी है अर्थ इन सबसों युक्त है ४१ ॥ हीरकछंद ॥ पंडितगण मंडितगुण दंडितमति देखिये। क्षत्रियवर धर्मप्रवर क्रुद्धसमर लेखिये ॥ वैश्य सहित सत्य रहित पाप प्रकट मानिये । शूद्रशकति विप्रभगति जीव जगति जानिये ४२॥ पंडित पद ते ब्राह्मण जानौ ते अनेक गुण जे शास्त्रादि हैं तिनसों | मंडित युक्त हैं औ दंडित शिक्षित मति जिनकी अर्थ सतमति सों युक्त हैं औ क्षत्रिय क्षत्रधर्म करिकै प्रवर बली हैं औ समरही में क्रोध करत हैं औ वैश्य बनियां सत्यसों युक्त हैं औ पापसों रहित हैं औ शूद्रनके जीव में ब्राह्मणकी भक्ति जगति है ताही में तिनकी शक्ति बल जानियत है अर्थ