१८६ रामचन्द्रिका सटीक। भुजा पसारि अासपास मेयोप संहरै॥ विमान पासमान के जहां तहां भगाइयो। अमान मानसो दिवान कुभकर्ण पाइयो ५ रावण ॥ समुद्रसेतु बांधिकै मनुष्य दोह पाइयो । लिये कुचालि वानरालि लक अक लाइयो ॥ मिल्यो वि. भीषणौ न मोहिं तोहिं नेहू डरेउ । प्रहस्तादिदै अनेक मत्रि भित्र सहरेउ ६ करो सो काज प्राशु बाजु चित्तमें जो भावई । असौख्य होइँ जीव जीव शुक्र सौख्य पावई ॥ समेति राम लक्ष्मणे सो वानरालि भक्षिये । सकोश मत्रि मित्र पुत्र धाम ग्राम रक्षिये ७॥ मान गर्न दीवान सभा ५ वानरालिको लकके अक कहे गोदमें लायो है अर्थ लंक के मध्यमें प्राप्त क्रियो है अथवा जो पुरी काहू कबहू नहीं घेरयो ताको घेरिकै अंक कहे कलंक लायो है या रामचन्द्रके बलको वर्णन है निंदा नहीं है तासो सरस्वती उतार्थ नहीं कियो ६ ऐसो कार्य करो जासों देवतनको विघ्न हो जीव जे बृहस्पति हैं ते असौख्य होइ औं हमारी जय हो शुक्र मुग्य पा सरपनी उ राम लमग सगेन या पान रागि का भरिये का भरण परि सकियन है अब नही भरा गरि सकियत कान र तरवार दम भण करे है इनको रोतुषमादि धर्म दोसदमारो नाव अनिडरोई ना कोश रहे खना। सदित म ज्यादिवन को रपिये कहे रक्षण करि सरित है अरे नहा रमण साकिया अथे ये पता सपको पारि नामानि ले चाहा है ७॥ कुभरण-गनोग्मालद ॥ सुनिये कुलभूषण देवीदपण। पहु नाजिविराजिनो तुम भूषण ॥ भवभूपजे चारिपदारथ गाधन । तिनको वह नाहें बाधक वापत पकजनाटिका छद ॥ धर्म रत प्रति अर्थ बटात । सनन हितरतिको चिद गारत ॥ सनति उपजतही निशि वासर । साधन तन; मन मुक्ति महीधर ॥ AN OCENION
पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/१८८
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।