रामचन्द्रिका सटीक। १८१ बाजै । मिले दामिनी सों मनो मेव गाऊँ ३८ पताका बन्यो शुभ्र शार्दूल शोभै । सुरेंद्रादि रुद्रादिको चित्त क्षोभै ।। लसै छत्र माला से सोमभाको । रमानाथ जानों दशग्रीव ताको ३६ पुरद्वार छोड्यो लडे पापु आयो। मनो दादशा- दित्यको राहु धायो । गिरिग्राम लैलै हरिग्राम मारे । मनो पझिनीपत्र दती विहारै ४०॥ दामिनी सम स्वर्ण किंकिणी के यूथ कह समूह हैं मेघसम रावण के श्याम घोड़े हैं। यथा बाल्मीकीये "स्थ राक्षसराजस्य नरराजो ददर्श ह ।। कृष्णवाजिसमायुक्तं युक्तं रौद्रेण वर्चसा " ३८ शार्दूल कहे ध्याघ्र ३६ पुर- रक्षा के लिये मेघनादादि को पुरद्वार में छाडिक आप लरिषे को प्रायो है। पथा बाल्मीकीये राबणोक्तिः "ततस्स रक्षोधिपतिर्महात्मा रक्षासि तान्याह महाबलानि । द्वारेषु चार्याग्रहगोपुरेषु सुनितास्तिष्ठति निर्विशंका ॥ इहागत मां सहित भवद्भिर्वनौकसश्चिद्रमिदं विदित्वा । शून्यो पुरी दुष्पसही प्रमथ्य प्रवर्षयेयुः सहसा समेताः ॥ विसर्जयित्वा सचिवांस्ततस्तान् गतेषु रसस् यथा नियोगे" सो गिरि जे पर्वत हैं तिनके नाम कई समूह लैलै के हरिजे वानर हैं तिनको समूह मारत है तिन गिरिसमूहन में रावण पभिनी कमलिनीपमें दंती सम विहार कौतुक करत है अर्थ गिरिग्राम रावणकी देहमें दतीकी देह में पमिनीपनसम लागत है ४०॥ सवैया ॥ देखि विभीषणको रण राषण शक्ति गही कर रोपरई है। छूटतही हनुमत सो बीचहि पूछलपेटिके डारि दई है। दूसरि ब्रह्म कि शक्ति अमोघ चलावतही हाइहाइ भई. है।राख्यो भले शरणागत लक्ष्मण फूलिके फूलसि मोदि 'लई है ४१ सग्विनीछंद ॥जोरहीं लक्ष्मणे लेन लाग्यो जहीं। मुष्टि छाती हनूमत माखो तहीं॥ श्राशुही प्राणको नाशसों बैगयो । दंड द्वैतीनि में चेत ताको भयो ४२ मरहट्टाछद ॥ आयो बरिमाणनि लै धनुवाणनि कषिदल दियो भगाइ।
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