पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/१८१

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

1 रामचन्द्रिका सटीक। १७६ नीतिमत तत्त्व समुझिये। देश काल गुणि युद्ध अभिये॥ मत्रि मित्र परिको गुण गहिये । लोकलोक अपलोक न बहिये २८॥ दाशरथिदूत भगद औ हनुमान् सीताको देहु तुमसों इत्यादि सधिकी बातें कहि आपने प्रभुको काज साधत हैं श्रौ युद्ध में आपनो मरण घा तादि षचाइ आपनो हित करत हैं औ रावरो पूत युद्ध कराइ आफ्नी श्री | तुम्हारिउ मृत्यु कियों चाहत हैं २६ विषसे खातहू में कटु औ गुण जिन को मृत्युदायक है औ दाडिम बीजसे खातहू में मधुर औ गुण जिनको पुष्टिकर्ता है औ गुड़से खातमें मधुर गुण दुःखद है औ नींबसे खातमें कटु | गुण सुखद है २७ कहूं यह पाठ है कि और विचार तत्त्व सब लहिये तो उपजाति चद्रवर्मबंद जानौ २८ ॥ रावण ॥ चारिभांति नृपता तुम कहियो । चारि मंत्रिमत मैं मन गहियो । राम मारि सुर एक न बचि है । इद्रलोक बसोवासहि रचि २६ प्रमिताक्षराछद ॥ उठिकै प्रहस्त सजि सेन चले । बहुभांति जाइ कपिपुंजदले । तब दौरि नील उठि मुष्टि हन्यो । असुहीन गिखो भुव मुंडसन्यो ३० वंशस्थाछंद ।। महाबली जूझतही प्रहस्तको । चल्यो तहीं रावण मिडि हस्तको || अनेकभेरी बहुदुंदुभी बजै । ग- यंद क्रोधांध जहां तहां गर्जे ३१ सनीर जीमूतनिकाश शोभहीं। विलोकि जाको सुर सिद्ध क्षोभहीं ॥ प्रचण्ड नैऋत्यसमेत देखिये । सप्रेत मानो महकाल लेखिये ३२ विभीषण-वसंततिलकचंद ॥ कोदंडमडित महारथवंत जो है। सिंहध्वजा समरपडितवृदमोहै ॥ महाबली प्रबल काल कराल नेता । समेघनाद सुरनायक युद्धजेता ३३ ॥ रामचन्द्रको मारिकै श्री सुर देवता एकौ न मोसों बचिहें अर्थ सब देवनहू को मारकै इंद्रलोक में बसोवास रचि हैं सरस्वती उतार्थ. .