रामचन्द्रिका सटीक । १५ जनायो प्रताप पावक रघुवंशिन को इति शेषः या प्रकार अरुण पताका पंक्तिको वर्णन करि यह पदसों दूसरी श्वेतपताका पंक्तिको अवलोकि वर्णन लगे सो जानो मेरी करी कहे बनाई विश्वामित्र सृष्टि करन लागे हैं तब नदी बनायो है सो आकाशमें है पुराणोक्त है कविप्रियाहू में कह्यो है कि "ऊंचे ऊंचे अटनि पताका अति ऊंची जनु कौशिककी कीन्ही गंग खेलें ये तरलतर।" अथवा मेरी कहे हमारी भगिनी भगिनीति शेषः। दिवि कहे दिव्यरूप कहे खेलति है आकाशमें कौशिकी नदी है सो विश्वामित्र की भगिनी है ३८॥ दोहा ॥ जीति जीति कीरति लई शत्रुनकी बहुभांति ॥ पुरपर बांधी शोभिजै मानोतिनकी पांति ३६ त्रिभंगीछंद ।। सम सब घर शौभैमुनिमन लो.रिपुगण क्षोभै देखि सबै। बहु दुंदुभि बाजै जनुघन गाज दिग्गज लाजें सुनत जब।।जहँतहँ श्रुति पढ़हीं बिघन न बढ़हीं जय यश मढ़हीं सकल दिशा। स- बई सबविधि छम बसत यथाक्रम देवपुरीसम दिवसनिशा४०॥ ताही श्वेतपताका पंक्तिमें फेरि तर्क है ३६ द्वैखंदको अन्वय एकहै क्षोभैं डरत हैं हम समर्थ रातिउ दिन देवपुरी सम है या श्लेषार्थहू है कैसी | देवपुरी औ अयोध्या है सम बराबरि है दिन राति जामें घटत बढ़त नहीं छः महीना उत्तरायण दिन रहत है दक्षिणायन राति रहत है औ सम है तुल्य आनन्ददायक है रातिउ दिन जामें रात्रिहूको चौरादिको भय नाही होत और अर्थ दुवौपक्ष एकही है ४० ॥ कविकुल विद्याधर सकलकलाधर राजराज वर वेष बने। गणपति सुखदायक पशुपति लायक सूरसहायक कौन गने।। सेनापति बुधजन मंगल गुरुजन धर्मराज मन बुद्धि घनी।बहु शुभ मनसाकर करुणामय अरु सुरतरंगिणी शोभसनी ४१॥ फेरि कैसी है देवपुरी कवि शुक्र औ कुलकहे समूह विद्याधरनके विद्या- धर देवयोनि विशेष है औ सकलकलाधर चन्द्रमा औ राजराज कुबेर ये संब वरवेष कहे सुंदर वेष कहे रूपसों बने हैं औ सुखदायक जो गणपति गणेश हैं औ लायक कहे श्रेष्ठ पशुपति महादेव हैं औ सूर कहे सूर्य और
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