पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/१७३

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रामचन्द्रिका सटीक। १७१ अगद कयो कि श्रीराम बाण धरिफै तुमको मारिहैं ताको उत्तर रावण दियो कि महामीच जो है सो मेरी सदा पाई धोइवे के अर्थ दासी है याते अतिन्यून दासी जनायो एकशत एक मीच हैं तामें शत भाल मीचु हैं एक महामीचु है शतमीचु उपायसों दूर होती हैं एक महागीच काहू उपाय | सो नहीं मिटति । यथा भावप्रकाशे "एकोत्तर मृत्युशतगर्वाण प्रचक्षते । तत्रैका कालसयुक्त शेषास्त्वागतवः स्मृता." यामों या जनायो कि युद्धादि | में मारवो तो अकालमृत्यु है सो मेरे समीप कैसे आइ है २३ शका कहे शक्का पाककारी रसोईदार २४ ॥ अंगद-विजयछंद ॥ पेटचढ़यों पलना पलिका चढि पा- लकिडू चढि मोह मढ्योरे। चौकचढयो चित्रसारी चढयो गजवाजि चढयो गढ़ गर्व चढयोरे । व्योमविमान चढ्योई रह्यो कहि केशव सो कबहू न पढयोरे। चेतत नाहिं रह्यो चदि चित्तसो चाहत मूढ चिताहू चढयोरे २५ ॥ प्रथमहिं पेट में चढ़यो कहे गर्भ में पायो जब जन्म भयो तब पलना में चड़िके भून्यो कछु और बड़ो भयो तब पलिका जो खता है. सामें चदिक | सोवन लाग्यो श्री जब ब्याह भयो तब पालकी में चढ़ि ब्याहन चल्यो तब मोह जो माया है तामें मदयो कहे युक्त भयो फेरि पाणिग्रहण में चौक में चढ़यो फेरि स्त्री के संग चित्रसारी में चदयो फेरि राजा है के गजवाजि में चदयो औ गढ़पर चढ़यो औ गर्वपर चढ़यो अर्थ राज्याभिमान भयो औ जेहि कहे जाने अर्थ जाकी कृपासो व्योम में विमानन पर चढ़योई रखो अर्थ पुष्पकादि विमाननपर चढ्यो आकाश २ फिरत रथो केशव कहत हैं कि सो जो वे प्रभु रामचन्द्र हैं ताको काई न पढ़यो अर्थ राम नाम कचह म अप्यो सो हे मूह ! अब चिताहू पर चढ़यो चाहत है साहूपर तेरो चित्त चढ़ि रखा है कहे मत है रयो है तामें तू चेतत नहीं अर्थ घेत नहीं करतो चिताह में चढ़यो चाहत है यह कहि या जनायो कि रामचन्द्र तोहिं शीघ्र की मारि है तासों उनके शरणमों जाइकै आपनो भलो करु २५ ॥ 'रावण-भुजंगप्रयातछंद ॥ निकालो जो भैया लियो राज जाको । दियो कादिक जू कहात्रास ताको॥ लिये