१६४ रामचन्द्रिका सटीक। | चलत है तैसे रावण के मारिबेको चलीमावति है औ रामचन्द्रको जो विग्रह विरोध है सोई है अनुकूल हित जाको अर्थ रामचन्द्र के विरोधही सों है | कार्यसिद्धि जाकी श्री सब कहे पूर्ण अनेक लक्ष जे ऋक्ष भाल हैं तिनको है बल जाके औऋक्षराज जे जाववत हैं तिनको ऐसो है मुख जाको ४० ॥ हीरकछद ॥रावण शुभ श्यामलतन मदिरपर सोहियो। मानहुँ दशशृगयुत कलिंदगिरि विमोहियो । राघवशर लाधवगति छत्र मुकुट यों हयो। हस शबल अंश सहित मानहुँ उड़िके गयो ४१ लजित खल तजि सुथल भन्जि भवन में गयो । लक्षण प्रभु तक्षण गिरि दक्षिणपर सो भयो॥ लक निरखि अक हरषि मर्म सकल जो लयो। जाहु सुमति रावण वह अंगदसन यों कह्यो ४२ चचलाछद ।। रामचन्द्रजू कहंत स्वर्षलंक देखि देखि । ऋक्षवानरालि घोर ओर चारिहूँ विशेखि ॥ मंजु कजगंधलुब्ध भौंरभीरसी विशाल । केशवदास पासपाम शोभिजे मनो मराल ४३॥ शक्ल कहे अनेक रंग मिश्रित हैं अशु कहे किरण जाके ऐसे जे सूर्य हैं तिन सहित मानो कलिंदगिरि भूगते समूह उडिगयो है यहां जाति विषे | एक वचन है हसनके सदृश श्वेत छन है औ सूर्य के सदृश अनेक रंग नगजटित मुकुट हैं ४१ दक्षिणगिरि कहे समुद्रके दक्षिण कूलको गिरि | समुद्र पारको गिरि इति मर्मभेद ४२ भौंरभीरसम ऋक्ष हैं मराल हससम वानर हैं ४३॥ ताम्रकोट लोहकोट स्वर्णकोट आसपास । देवकी पुरी घिरी कि पर्वतारिके विलास ॥ बीच बीच हैं कपीश बीच बीच ऋक्षजाल।लककन्यका गरेकि पीतनीलकंठमाल४४|| इति श्रीसत्सकललोकलोचनचकोरचिन्तामणिश्रीरामचन्द्र- चन्द्रिकायामिन्द्रजिद्विरचितायांरामसैन्यसमुद्- तैरणनाम पञ्चदशः प्रकाश. ॥ १५ ॥
पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/१६६
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।