रामचन्द्रिका सटीक । गये राग कहे जो अगन म लग्यो कुकुमादि लेप है तासों रये कहे युक्त पट औ भूषण बहिआये हैं सो मानो सुर जे देवता हैं तिनको सागर द में जीत्यो है सो मानो लूटिलीन्हाँ है इहा पट भूपणन को बहि प्राइलो विषय कहे उपमेय है सो अनुक्क है तासों अनुक्त विषय वस्तूपेक्षा है ३१ । ३२ सेतु में लगिकै जहा तहां शोभ गहे ज सरितन के प्रवाह है त फरि कह उलटिक बहन लगे सो पाय परि परि मनावत है ऐसी भली कहे बड़ी रति प्रीति पतिकी समुद्र की दवनदी आकाशगगा में दखि मानो आपने पिताके घरको रूसिचली हैं ३३ नागर श्रेष्ठ ३४ उरते अर्थ विचार ते जो वस्तु करिबो होत है ताको विचार प्रथम मनहीं मों आवत है ३५ ॥ दोहा । सेतुमूल शिव शोभिजे केशव परमप्रकास ॥ सागर जगत जहाजको करिया केशवदास ३६ तारकछद ॥ शुक सारण रावण दूत पठायो । कपिराजसों एक संदेश सुनायो। अपने घर जैयहु रे तुम भाई । यमहू पहें लक लई नहिं जाई ३७ सुग्रीव ॥ भजि जैहों कहा न कहू थल देखो। जलहू थलहू रघुनायक पेखो॥ तुम बालिसमान सहोदर मेरे। हतिहों कुल स्यौतिन प्राणन तेरे ३८ सब रामचमूतरिसिंधुहि आई । छवि ऋसनकी धरप्रवर छाई ॥ बहुधा शुक सारण को जो बताई। फिर लक मनों वर्षा ऋतु प्राई ३६॥ संसारसागर को जो जहान रामनाम है ताके करिया कहे केवटजे शिव हैं जैसे केवट जहाज में चढ़ाइ समुद्र पार करत है नैसे शिव मरणकाल काशी में रामरूपी तारकमर जहाजपर चढ़ाई ससार पार करत है ते सेतु | के मूलमें परमभकाश कहे प्रसन्नता सौ शोभित है जो जहाजपर चढ़ाई पार करत है सो आपने प्रभुमों सेतुपर चढ़ाइ पार करिव को अधिकार पाइ प्रसन्न भयोई चाहै इति भावार्थः ३६ । ३७ ता धनके सदेश में सुग्रीव को भाई को ताको जवाब मुग्रीव दियो कि रावणसों कहियो कि तुम बालिके समान हमारे भाई हौ तासों तुम्हारो वध उचित है ३८ जा राम
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