१५२ रामचन्द्रिका सटीक । विपक्ष कहे शत्रु जो मेघनाद है सो म्वहिं बांधि,लै गयो २७ शरत्काल में सीता के दूँडिवेके लिये वानरनको रामचन्द्र पठायो है औ मास दिवस की अवधि दई है सो समुद्रतटमें अगद कयो है कि "सीय नपाई अवधि बिताई " तो शीतकाल के मास सों अधिक दिन बीते नौ अमरकोश में | कश्यो है कि द्वौ द्वौ मायादि मासौ स्याहतुः " या मतसो कार औ कार्तिक दै मास शरत्काल जानो भी कारशुक्ल दशमी विजयदशमी कहावति है ताको रामचन्द्र चले यह विरोध है नहीं और अर्थ दशमी तिथिमों विजय- नामा मुहको पाइकै श्रीरामचन्द्र चले यथा । बाल्मीकीये ५ अभिनिन् हूत्रे सुग्रीषभयाणमभिरोचय । 'युक्तो मुहूर्तो विजया मासो मध्यं दिवाकरः" कैसे हैं हरियूथ विना पक्षके पतंग कहे पक्षी हैं अर्थ पिन पक्ष पक्षीसम उड़त हैं २८॥ समुझ न सूरप्रकाश। आकाशवलितविलाश ॥ पुनि ऋक्ष लक्ष्मण संग । जनु जलधि गंगतरग २६ सुग्रीव- दंडक ॥ केशवदास राजचन्द्र सुनौ राजा रामचन्द्र रावरी जबहिं सैन उचकि चलति है। पूरति है भूरि धूरि रोदसिहि आस पास दिशि दिशि वरषाज्यों बलनि वलति है । पन्नग पतग तरु गिरि गिरिराज गजराज मृग मृगराज राजनि दलति है । जहा तहा ऊपर पताल पय भाइ जात पुरहनि कसे पात पुहुमी हलति है ३०॥ वानरन सग में लान ऋक्ष है सो गानर औ यक्ष कैमे शोभिन है जानो जलधि भौ गगके नरग है जलधि तरग राम मा गगनरग सम धानर है २६ रोदसी कहे भू आकाश " वापराभृमी च रोदसी इत्यगर घसनि पहे पागर गुपनि ओ मेघ समृहनि फरि दिशि दिशि कहे दी दिशनिको वलित करे आच्छादित करति है पनग सर्प पतग पक्षी ३० ॥ लक्ष्मण ॥ मारके उतारको औनरेही रामचन्द्र कियों केशोदास भूरिभारत प्रवलदल । टूटत, तरुवर गिरे गण गिरिवर सखे सब सरवर सरिता सकल जल ॥ उचकि
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