रामचन्द्रिका सटीक । १४५ दोहा ।। या चौदहें प्रकाश में है लकादाह । सागरतीर मिलान पुनि करि हैं रघुकुल नाह १ रावण-विजयछद ।।३ कपि कौन तु अक्षको घातक दूत बली रघुनदनजीको। को रघुनंदन रे त्रिशिराखरदूषण दूषण भूषणभूको ॥ सागर कैसे तखो जैसे गोपद काज कहा सियचोरहि देखो। कैसे बँधायो जोसुंदरि तेरी छुई हग सोवत पातक लेखोर रावण-चामर- छद || कोरि कोरि यातनानि फोरि फोरि मारिये । काटि काटि फारि मासु बाटि बाटि डारिये ॥ खाल बैंचि बैंचि हाड़ भूजिभूजि साहुरे । पौरि टांगिरुंडमुंड लैउमद्र जाहुरे३ विभीषण ॥ दूत मारिये न राजराज छोडि दीजई । मंत्र मित्र पूंचिकै सो और दंड कीजई ॥ एकरकमारि क्यों बडो कलंक लीजई | बुंद सो कि गो कहा महासमुद्र छीजई ॥ मिलान कहे विनाम १ हम तेरी स्त्रीको सोवतमें हगसी छुयो अर्थ देख्या सापातकसों बांधे गये तू रामचन्द्रकी स्त्रीको हरिल्यायो है सेरी अति दुर्गति है है इति भावार्थः २ हनुमान के कठोर धधम मुनि कोपकार रावण | राक्षसन सो कहत है क्रोरि कोरि कहे करोरि करोरि कहे जे यातनाबाधा है नख दत ताजन दंड घातादिसों फोरि २ कहे जामें चर्म फोरि रुधिर कढ़िा या प्रकार सो मारिडारी कह साजनानि पाठ हैं तो वाजन कहे चाबुक भी खाल बँधै रोमांचिके कुठारादि सो हाडनके स्थान में कार्मिकै (ो रिकादि सी फारिकै ताको मासु बाटि २ डारिय कहे आपनो आपनो हीसा फरि लीजिये श्री हाड़ बैंचि के कहे निकारि कै भूजि भूमि के खाइ डारी रुड' पदते रह की खाल जानो अर्थ यह कि रुड़की खालमें तृणादि भरिकै सबके देखिने के लिये पौरिमें कहे पुरद्वार में टॉगि देहु भो मुडको लेकै उडाइ कहे उहि राम पारा जाउ राम पा इतिशेष नासो मुंह मीन्हि रामचन्द्र दतको मारयो जानि दुव पनि इति भावाय. ३॥ ४ ॥ तुल तेल बोरि बोरि जोरि जोरि वाससी । ले अपार ?
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