पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/१४

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रामचन्द्रिका सटीक । ११ देखते हैं इति भावार्थः अथवा निर्गुणपर्शी होत कहे निर्गुण ज्योति में मिलिजान बेर नहीं लागति अथवा निर्गुणते पर अन्य विष्णुकी श्री शोभा होत बेर नहीं लागति पुरातन पूर्वकृत २० ॥ दोहा । जागति जाकी ज्योति जग एकरूप स्वच्छंद ॥ रामचन्द्रकी चन्द्रिका बरणतहों बहुछंद २१ रोलाछंद । शुभ सूरजकुलकलशनृपतिदशरथ भये भूपति। तिनके सुत भये चारि चतुर चित चारु चारु मति ॥ रामचन्द्र भुवचन्द्र भरत भारतभुवभूषण । लक्ष्मण अरु शत्रुघ्न दीह दानव दलदूषण २२ छत्ताछंद ॥ सरयू सरिता तट नगर बसै अ- वध नाम यश धामधर ॥ अघोघविनाशी सब पुरवासी अमरलोक मानहु नगर २३ ॥ ज्योति ब्रह्मज्योति अथवा अंगछवि औ बहुछंद कहे अनेक रंग तौ जा रामरूपी चन्द्रकी ज्योति तो एकरूप है ताकी चन्द्रिका अनेक रंग हैबो आश्चर्य है यह युक्ति है औ अर्थ यह कि बहुत छंद जे दोहादि हैं तिनों युक्त २१ सूर्यकुल के कलश जे नृपति अजादि हैं तिनमें दशरथ भूपति राजा भये भारत भरतखंड २२ यशको धाम कहे घर है धरा पृथ्वी जाकी औ जा पुरीके वासी देवतन सरिस अघ पापनके ओघ समूहन के विनाशी हैं तासों देवलोक सम है २३ ॥ छप्पै ॥ गाधिराजको पुत्र साधि सव मित्रशत्रुबल । दान कृपान विधान वश्य कीन्हो भुवमंडल ॥ कै मन अपने हाथ जीति जग इंद्रिनगन अति । तपबल याही देह भये क्षत्रिय ते ऋषिपति ॥ तेहि पुर प्रसिद्ध केशव सुमति काल अ- तीतागतनि गुनि । तहँ अद्भुतगति पगुधारियो विश्वामित्र पवित्र पुनि २४. प्रझटिकाछंद ॥ पुनि पाये सरयू सरित तीर । तहँ देखे उज्ज्वल अमल नीर ।। नव निरखि निरखि युति गति गंभीर । कछु बरणन लागे सुमतिधीर २५ ॥