१३४ रामचन्द्रिका सटीक । तरुणी अवलोकन भाये ॥ लंका॥ हति मोहिं महामति भीतर जैये। हनुमान ॥ तरुणीहि हते कबलौं सुखपैये ४४ लंका ॥ तुम मारेहिपै पुरपैठन पैहो । हठ कोटि करौ घरही फिरिजैहो । हनुमंत बली तेहि थापर मारी । तजि देह भई तबहीं वरनारी ४५ 'लका-चौपाई ॥ धनदपुरी हों रावण लीनी । बहुविधि पापनके रसभीनी ॥ चतुरानन चितचिंतन कीन्हो । बरु करुणा करि मोकह दीन्हो ४६ जब दशकंठ सिया हरि लेहें। हरि हनुमंत विलोकन ऐहैं। जब वह तोहिं हतै तजि शंका । तब प्रभु होइ विभीषण लंका ४७ चलन लगोजवहीं तब कीजो । मृतकशरीरहि पावक दीजो। यह कहि जातभई वह नारी। सब नगरी हनुमत निहारी ४८ ॥ दंश कहे डास यामें कौऊ कोऊ सदेह करत हैं कि दशरूप परिकै गये मुद्रिका कैसे लैगये तालिये और अर्थ करि दश कहे सिंह "करिणं हस्तिनं दातीनि करिदंश " ताको रूप करि चले तो सिंहको औ श्वानको रूप एक होता है ताही सो श्वानको नाम प्रामसिंह है श्वानको ग्राम में जैवो साधारण रहत है तासो श्वानको रूप धरिकै गये ४२ सूक्ष्म कहे लघुश्वान के अर्थमें सूक्ष्म कहे तुच्छ ४३१ ४४ । ४५ धनद कुबेर ४६ हरि वानर ४७ | मृतकशरी कहे पुरीरूप मृतकशरीर लंका ने या प्रकारको वर माग्यो है साही लिये हनुमान् लकापुरी को जारि ४८ ॥ तब हरि रावण सोवत देख्यो । मणिमयपालिककी छवि लेख्यो ॥ तहे तरुणी बहुभांतिन गावे । बिचबिच प्रावक बीन बजावै ४६ मृतकचितापर मानहुँ सोहै । चहुँ दिशि प्रेतवधू मन मोहै। जहें जहँ जाइ तहाँ दुरा दुनो। सिय बिन है सिगरो पुर सूनो ५० भुजगप्रयातछद ॥ कहू किन्नरी किन्नरी ले बजारें । सुरी श्रासुरी घांसुरी गीत गावे ॥ क्हू यक्षिणी पक्षिणी लै पढावै।नगीकन्यका पन्नगीको नचा३५१
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