रामचन्द्रिका सटीक। १३३ पक्ष तेरे जामि हैं सुलसीकृत रामायण मों प्रसिद्ध है ३८ सदा कलकहीको रफ कहे दरिद्र अर्थ कलकरहित जो सीतापदपंकज हैं कमान सोपको नाम पश्चिम मों प्रसिद्ध है औ गोलाके साहचर्य सो अतिनिश्चित है। यथा भूषणकवि "छूटत कमानन के गोली तीर याननके मुशफिल जात मुरचान एके श्रोटमें । वाही समय शिवराम दापकरी पैंडापर दै सुरगहलाको हुकुम करयो गोटमें ॥ भूषण भनत कहौं किम्मति कहालों देशी हिम्मति इहालों शरजा के भट जोटमें । ताउ दैदै मोचन कगूरनमें पांउ दैदै घाउ दैदै अरि- मुख कदे जाय कोटमें " ३६ ॥ दोहा ॥ उदधिनाकपतिशत्रुको उदित जानि बलवत ॥ अंतरिक्षही लक्षिपद अच्छ छुयो हनुमत ४० बीच गये सु. रसा मिली और सिंहिकानारिलीलि लियो हनुमत तिहि कढ़े उदरक: फारि ४१॥ उदधि जो समुद्र है तामें नाकपति जे इन्द्र हैं तिनको शत्रु मैनाक ताको उदित कहे आपने विश्रामके लिये उठ्यो जानिक अंतरिक्षहीकडे आकाश हीसौं लक्षि कहे देखिकै बलवंत जे हनुमत हैं तिन ता मैनाक बोधके लिये अच्छ कहे स्वच्छ जो पद हैं तासौं छुयो स्पर्शमात्र करयो काहेते बाल्मी- कीय रामायण में लिख्यो है कि हनूमान् मैनाकसों आपनी प्रतिमा को है कि मध्यमें विश्राम न करिहैं यथा "वरते कार्यकालो मे अहश्चाप्यनिवर्तते । प्रतिज्ञा च मया दत्ता न स्थातव्यमिहांतरा" अथवा पद के सदृश अच्छसों छुयो अर्थ जैसे पदसों रपशकरि लघुविश्राम करनो रहै तैसे केवल दृष्टिसों स्पर्श करि विश्राम कियो ४० सिंहिकाने हनुमतको लीलि लियो ४१ ॥ तारकछंद ॥ कछु राति गये करिदश दशासी।पुरमांझ चले वनराजिविलासी ॥जबहीं हनुमंत चले तजि शंका । मग रोकिरही तिय है तब लका ४२ लंका॥ कहि मोहिं उलध्य चले तुम कोहो । अति सक्षमरूप धरें मन मोहौ ॥ |पठये क्यहि कारण कौन चलेहो । सुरहो किधों कोउ सुरेश भलेही ४३ हनुमान् ॥ हम वानर हैं रघुनाथ पठाये।तिनकी
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