पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/१३०

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रामचन्द्रिका सटीक। १२७ पात बखानो॥ धनुहै यह गोरमदाइनि नाहीं। शरजाल बहै जलधार वृथाही १७ भट चातक दादुर मोर न बोलै । चपला चमकें न फिरें खग खोले॥ युतिवतन को विपदाबहु कीन्हीं। धरनी कह चंद्रवधू धरि दीन्हीं १८ तरुनी यह आत्रे ऋषी- श्वरकीसी। उरमें हम चद्रकलासम दीसी ॥ बरपान सुने कि- लके किल काली। सब जानत हैं महिमा अहिमाली १९ घनाक्षरी ॥ भौहें सुरचाप चार प्रमुदित पयोधर भूषण जरायज्योति तड़ित रलाई है । दूरि करी सुख मुखसुखमा शशीकी नैन अमल कमलदल दलित निकाई है ॥ केशव- दास प्रबल करेणुका गमन हर मुकुत सुहंसक शबद सुखदाई है। अंबरबलित मति मोहै नीलकठजूकी कालिका कि बरषा हरषि हिय आई है २० ॥ १७ । १८ सम कहे बराबरि अर्थ जैसे अनिकी स्त्री के उरमे देख्यों है तैसे याके उरमें देख्यो है अनसूयाको पातिव्रत देखि ब्रह्मा विष्णु महेश पुत्र होथे की इच्छा करि गर्भ में प्राय चन्द्रमा दत्तात्रेय दुर्वासारूप यथा- क्रम अवतार लिया है कथा पुराणनमें प्रसिद्ध है अहिमाली महादेव औ सर्पनकी माला वर्षागमन में सर्प अति प्रसभ होत है १६ कैसी है वर्षा कि जामें अनेक गृह पतन चौरादि के भी कहे डर हैं और सुरचाप कहे इंद्र धनुष है चारु सुंदर औ प्रमुदित कहे प्रसन्न हैं पयोधर मेघ जामें औ भू कहे पृथ्वी औ ख कहे आकाशमें न जराइ कहे देखि परति है ज्योति जाकी ऐसी तड़ित जो बिजुली है ताकी सरलता है औ दूरि कीन्हों है सुख कहे सहजही मुखकी सुखमा शोभा शशी कहे चन्द्रमाकी अर्थ चन्द्रप्रकाश नहीं होन पावत औ नै जे नदी है ते न कहे नहीं हैं अमल निर्मल अर्थ नदिन को जल म्लान है जात है श्री कमखन को दल समूह दलित होत है औ निगाई को फाई सो रहित है अथवा कमलालको दलिन है निकाई नामें केशवदास कहत है कि रएका जा धूरि ई ताको गमन हर प्रयल कह जल जामें अर्थ पेसो जल चारोंओर भया है जामों धूलि नहीं उडति sus