१२६ रामचन्द्रिका सटीक। सौ कहत हैं मित्र सूर्य अथवा मित्र लक्ष्मणको संबोधन है १० । १' एकादश चंदनों जैसो वर्णन करयो है ऐसी वर्षाऋतु.आई देखिकै रामचन्द्र कलाईस फलानिधि खजन फर्ज या तेईस छद में जे पचन है ते कहत भये इति शेषा १२ तूर नगारे तार उच्चस्वर १३ । १४ दिवि द्वार कहे आकाश के द्वार में स्वायलिपद ते रमन के बन्दनपार जानौ बड़ेकी प्रवाई में बदनवार बाँधिये की रीति प्रसिद्ध है १५ ॥ तारकछंद । घनघोर घने दशहू दिशि छाये । मघवा जनु सूरजपे चढ़ि पाये॥ अपराधविना क्षितिके तन ताये। तिन पीड़न पीडितहै उठिधाये १६ ॥ तीनि छदको अन्वय एक है ग्रीष्मऋतु में प्रतिजमों सूर्य शिनि की के नन ताये तप्त फरयो है जा कोऊ शाहको दिन दोप दमदा ताको दह करिबो राजनरो उचित है सोन्द्र देवन के राजा तासा सूर्य को उचित दीपद किया जासों ऐसी अब न करें उत्पेभा पर यह राजनीति प्रकट देखायो प्रथा पृथ्वीम अशरण जाति अशरण को सहाय रियो बडन को उचित है तासों अथवा पृथ्वी को स्त्री जानिती की रक्षा करियो बरेनको उचित है नासो दृढभि कहे जे गजाद वाहनपर चमूके आगे नगारे बाजन है निर्वान को जाको वन शब्द सब कहत है सो नहीं है सबै कहे जेते निर्यात होते हैं नो पार करे वन के पात गिरिया यखानो कई कहत हैं अर्थ जे वार निर्घात हात है सो निर्यात नहीं है पारबार इद् सूरज को वन चलावन है ताही मो शब्द होता है मम कहे परापरि अर्थ जैसे अत्रि की स्त्रीके उर देख्यो तैसे याके उरमें देख्यो है गोरमाइनि कडे वचनुप नहीं है प्रत्यय धनुप है गोरमाइनि इन्द्रधनुप को नाम पश्चिम मों प्रसिद्ध है भी वरीनारणामों प्रकट होत है कह गोररादायन नाही पाठ है तो मोirTI कई मेघनके अपन कहे घरमें मध्य में इति नहीं है प्रत्यक्ष धनुष हैसूर की किरण मेघन में परि इन्द्रधनुष दोन है यह प्रसिद्ध है खड्ग पहे नरवारि तिने चन्द्र शुक्रादि तो एककी चूक | सो जातिमात्र को दह बड़े कोपको जनावन ( चन्द्रवधू पीरपहटी रसराज में को है " नवलब उरलाजे इद्रवधूसी होई" १६ ॥ अतिगाजत वाजत दुदुभि मानो। निरघात सबै पवि-
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