११४ रामचन्द्रिका सटीक। शबर छोड़ाह लई कामिनि की कामकी ॥ पाखडकी श्रद्धा की मटेशवश एकादशी लीन्हीके श्वपचराज शाखा शुद्ध सामकी केशव अदृष्ट साथ जीवजीति जैसी तैसी लंकनाथ हाथपरी छाया जायारामकी १८॥ क्षुद्रनको राज जो लफनाथ है सो छिद्र कहे अवसर ताकि भिक्षु कहे दंडीरूप परिकै सीतापै आयो शूर्पणखाकी नासिका काटेको जो पोच कहे बुरो शोच है सीताहरण निश्चय करि ताको मोचकै छोडिकै अथवा रावण को विशेषण है श्री भीमवेषको जो संकोच सिकोरनो रखो ताको मोधिक मर्थ जो लघु शरीर फखो रहै वाको पढाइकै अतरिक्ष भाकाश १७ धूम पुरके निकेत कहे घरमें अर्थ धूमसमूहमें धूमकेतु जो अग्नि है साकी शिखा ज्योतिहै कि धूमयोनि ले मेघर तिनके मध्य में सुधाधाम जो चन्द्रमा है ताकी रेखाको कला है कि सरे कहे बड़े वयसरे कई घौडर पायुप्रन्थि फरिकै प्रसिद्ध है तामें चित्रपुत्रिका है कि शवरनामा जो दैत्यहै सो कामको |श है वेहि कामकी कामिनी रतिको डाइलीन्ही है कि पाखंड के वशमों श्रद्धा परी है. यह कथा विज्ञानगीतामें प्रसिद्ध है कि मपतिके वश एका दशी परी कि श्वपचराज चांडालनको राजा शुद्ध सामवेदकी शाखा लीन्हों है अदृष्ट कर्म के साथ में जैसी जीवज्योति परी है तैसी छायाकृत जो राम की जाया सीता है सो लकनाथ के हाथ में परी १८॥ सीताजू-हरिलीलाछद ॥ हाराम हारमण हारघुनाथ धीरं । लंकाधिनाथवश जानहु मोहिं वीर ॥ हापुत्र लक्ष्मण छोड़ावहु वेगि मोहिं। मार्तडवंशयशकी सब लाज तोहि १६ पक्षी जटायु यह बात सुनंत धाइरोक्यो तुरंत बल रावण दुष्ट जाड ॥ कीन्हों प्रचड रथछत्रध्वजाविहीन । लोडयो वि- पक्ष तव भो जब पक्षहीन २० सत्ताबद ॥ दशकठ सीतहिं ले चल्यो । प्रतिवृद्ध गीघहियो दल्यो | चित जानकी श्र धमी कियो । हरि तीनि दै अवलोक्यिो२१ पदपद्मकी शुभ घूधरी । मणिनीलहाटकसों जरी ॥ जनु उत्तरीय विवारिके।
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