पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/११४

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रामचन्द्रिका सटीक । दोहा ॥ या द्वादशे प्रकाश खरदूषण त्रिशिरा नास ॥ सीताहरण विलाप सुग्रीवमिलन हरित्रास १॥ त्रास जो भय है ताको हरिकै सुग्रीवको मिलन है अर्थ बालिको वध निश्चय करि सुग्रीवको त्रास हरि रामचन्द्र मित्रता करिहैं १ ॥ तोटकछंद ॥ गइ शूर्पणखा खरदूषण पै । सजि ल्याइ तिन्हें जगभूषण पै ॥शर एक अनेकते दूरि किये । रविके कर ज्यों तमपुंज पिये २ मनोरमाछद ।। वृषके खरदुषण ज्यों खरदूषण । तब दुरि किये रविके कुलपूषण ॥ गदशत्रु त्रिदोष ज्यों दूरि करै वर।त्रिशिराशिर त्यों रघुनंदनके शर ३ भनि शूर्पणखा गइ रावण पै तब । त्रिशिराखरदूषणनाश कहे सल। तब शूर्पणखा मुखबात सबै सुनि। उठि रावणगो जहँ मारिच हो मुनि ४ दोधकछद ॥ रावण बात कही सिगरी त्यों । शूर्पणखाहिं विरूप करी ज्यो । एक सुराम अनेक सं- हारे । दूषण स्यो त्रिशिराखर मारे ५ तू अब होहि सहायक मेरो। हौं बहुतै गुण मानहुँ तेरो॥जो हरि सीतहि ल्यावन पैहै ।वै भ्रमि शोकनही मरिजेहे ६मारीच॥रामहि मानुषके जनि जानो। पूरण चौदहलोक बखानो। जाहु जहां तियले सुन देखो । हौं हरिको जलहूं थल लेखो७॥ रामचन्द्र की प्राज्ञा सो लक्ष्मण सीता को लैके गुफा राख्योहै यह कथा शेष जानी २ वषराशि के रवि सूर्य खर कहे तण के दूषण होत हैं सुखाइ डारत है तैसे ,रविके कुलके पूषण जे रामचन्द्र हैं सिन खर भी दूषणनाम राक्षसन को दूर कियो कहे माखो औ गदशत्रु जो वैध है सो जैसे त्रिदोष कहे कफ पित्त वात तीनोंको दोष एकही बार दूरि करत है तैसे रघुनदन केशर त्रिशिरा शिरको एकहीबार दूरिकरचो ३।४ स्यो कहे सहित । | सीताको ढढन भुतलम अमि कहे घूमि अथवा संदेह को प्राप्त हैकै ६ चौदही लोक में पूर्ण कई व्याप्त ७ ।।