- १०४ रामचन्द्रिका सटीक । वट पर्णकुटी तह प्रभु कीजै १६ दोहा॥ केशव कहे अगस्त्यके पंचवटीके तीर । पर्णकुटी पावन करीरामचन्द्र रणधीर १७ त्रिभंगीछंद ॥ फलफूलनपूरे तरुवररूरे कोकिलकुल कलरव बोलें।प्रतिमत्तमयूरी पियरसपूरी वनवनप्रति नाचति डोलें। सारो शुक पडित गुणगणमडित भावनि में निज अरथ बखान । देखहु रघुनायक सीयसहायक मनहुँ मदन रति मधु जानें १८ ॥ १३ तब कहे तुम्हारो १४ प्रशस्त नीको मुदेश सम उम्चनीचरहितति सनीर सजल औ वरु जे वृक्ष हैं तिनको जो पंड समूह है तासों मंडित युक्त श्री समृद्ध कहे वर्धमान अधिक इति शोभाको धरै धारण करे हो. निवासको कहे बसिबेको १५ । १६॥ १७ रामचन्द्र श्रागसनसों दंडका- रएपमें सरे कहे सुदर जे तरु सक्ष है ते फल औ फूलनसों पूरे युक्त भये अथवा रे जे फल औ फूल हैं तिन सो तरुवर पूरे श्री कोकिलके जे कुलजाति समूह हैं त कल कहे अव्यक्त मधुररव शब्दको बोलत हैं "काकली सुकले सूक्ष्मे ध्वनौ तु मधुरास्फुटे ॥ कलो मन्द्रस्तु गंभीरे तारोल्युश्चैत्रय त्रिषु इत्यमरः" श्री अतिमत्त जे मयूरी हैं ते पिय जे मयूर हैं तिनके रसमें प्रेममें पूरी धन वन प्रति नाचत डोलती हैं अर्थ जहां जहां मोर नाचत हैं वहां तहाँ सग मयूरी डोलती हैं सारो सारिका औ शुक जे गुण गणों मंडित पंडित मवीण हैं अर्थ अनेक गुणनमें पंडित हैं ते भावनिमें कहे अनेक भाव अभिप्राययुक्त गानके अर्थको बखानत हैं अथवा नृत्यक जे अनेक भाव चेष्टा है तिनमें अर्थको बखानत है जब जैसी चेष्टा देखत हैं तव वैसो अर्थ के प्रयोजनको बखान करत है तामें तर्क करत हैं कि रघुनायक रामचन्द्र श्री सीता श्री सहायक जे लक्ष्मण हैं तिनको इन वृक्षादिकन देख्यो है सो मानों मदन काम और रनि सहित मधु वसंत आनत है तो LITT Virt, 11 1177 TIBI मगत रन 512MMMITI गर पचार र मदन I a rial 1417 Talkin
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