रामचन्द्रिका सटीक। रघुनाथ सबधु पूजे ॥ जाके निमित्त हम यज्ञयज्योसो पायो। ब्रह्मांडमडनस्वरूप जो वेद गायो १२ ॥ निर्माण जो मोक्ष है ताके पथ कहे राहमें ठयो कहे युक्त करथा अर्थ | मुक्ति दिया-६ सकललोकशिरमौर जे रघुनाथ हैं ते शायक जे वाण हैं तिनको धरे अगस्त्य के ठौरमें गये अथवा रघुनायक भक्तिके वश कपा करिके अगस्त्यके और गये तहा सकललोकशिरमौर ज अपने शायक हैं तिन्हें धरे धारण करया विष्णु के धनुर्वाण अगस्त्यके यहा धरैरहे हैं ते रामचन्द्र को अगस्त्य दियो है यह कथा बाल्मीकीय रामायण में है - | थया सकललोकशिरमौर जो विष्णु हैं तिन के शायक धरे धारण करयो अथवा रघुनायकके सकललोकशिरमौर शायक अगस्त्यके ठौर धरे हैं ता लिये औ भक्तिवश कृपाकरि अगस्त्यके ठौर गये १० स्वाहा अग्निकी | स्त्री ११ सबै आपने अभिलाष पूजे पूरण करे ब्रह्मांडको मडन भूषण जो यह रावरी स्वरूप है ताहीके मिलिफे लिये हम यज्ञ यज्या होम्यो करयो इति सो यह स्वरूप पायो १२ ॥ पद्धटिकाछद ॥ ब्रह्मादिदेव जब विनय कीन। तट क्षीर- सिंधुके परमदीन ॥ तुम कह्यो देव अवतरहु जाइ । सुत हौं दशरथको होतु आइ १३ हम तबते मन आनद मानि । मन चितवत तव आगमन जानि॥ह्या रहिजे करिजै देवकाज। मम फूलि फल्यो तपवृक्ष आज १४ श्रीराम-पृथ्वीछद ॥अ- गस्त्य ऋषिराजजू वचन एक मेरो सुनौ । प्रशस्त सब भांति भूतल सुदेश जीमें गुनौ ।सनीरतरुषडमंडित स- मृद्धशोभा धरैं। तहां हम निवासको विमलपर्णशाला करें१५ अगस्त्य-पद्मावतीछद ॥ यद्यपि जगकर्ता पालक हा परि- पूरण वेदन गाये । अति तदपि कृपाकरि मानुषवपु धरि थल पूंछन हमसों आये ॥ सुनि सुरवरनायक राससधायक रक्ष मुनिजन यश लीजै । शुभ गोदावरितट विशद पच-
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