88 रामचन्द्रिका सटीक । लगाये । प्राण मनो मृत देहनि पाये॥आइमिली तब सीय सभागी। देवर सासुन के पगलागी ३०॥ अभिलाषी जे मुनिजन हैं अथवा मुनिजन संग लीन्हें औ और रामदर्शन के अभिलाषी हैं तिन्हें लीन्हें रामचन्द्र के हसिबेको हेतु लक्ष्मण के पचन १२७।२८ थोरे दिनकी बियानी गाय लवाय कहावति है २६ भरत के वचन मुनिकै भरत शत्रुघ्न को सीताके पास राखि लक्ष्मण मातन के मिलिये को भाये ताके पीछे सीता जो सभागी हैं सोऊ देवर जे भरत शहन हैं तिनसहित सासुन को भाइ मिलीं माप्त भई श्री सासुन के पदलागी ३० ॥ तोमरछंद । तब पूछियों रघुराह। सुखहें पिता तनमाइ । तब पुत्रको मुख जोइ । क्रमते उठीं सब रोइ ३१ दोधकछद ॥ आंसुन सों सब पर्वत घोये । जगम को जड़ जीवन रोये ॥ सिद्धवधू सिगरी सुनि आई । राजवधू सबई समुझाई ३२ मोहनछंद॥धरि चित्तधीर गये गगतीर । शुचि शरीर। पितृ तर्प नीर ३३ भरत-तारकछद ॥ घरको चलिये अब श्रीरघुराई । जनही तुम राज सदा सुखदाई ॥ यह बात कही जलसोंगलभीन्यो। उठि सोदर पाइँ परे तब तीन्यो३४ श्रीराम-दोधकछद ॥ राज दियो हमको वनरूरो । राज दियो तुमको अब पूरो । सो हमहूं तुमहूं मिलि कीजै । बाप को बोल न नेकहु छीजै ३५ दोहा ॥ राजाको अरु बापको वचन न मेटै कोई ॥ जो न मानिये भरत तो मारे को फल होइ ३६ भरत-स्वागताछद ।। मद्यपान रत स्त्रीजित होई। सन्निपातयुत बातुल जोई। देखि देखि तिनको सब भागे। तासु बात हति पायन लागै ३७ ॥ रामवनगमन दशरथमरण भरतागमनादि कथा क्रमसों कहत सब रोक्त भई ३१ सिद्ध तपस्वी अथवा देवयोनि विशेष ३२ । ३३ भरत लक्ष्मण शत्रुघ्न तीनों पायन परे कि घरको बलियो उचित है ३४ स्रो
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