पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/१००

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६६ रामचन्द्रिका सटीक। निज पायनि पथ चले भरिकै॥तरि गगगये गुहसगलिये। चित्रकूट विलोकत छॉडि दिये १४ ॥ जब भरत अग्नि सों अर्चा पूजा करी अर्थ चिता में अग्नि दियो तब प्रेसचर्चा मिटी अर्थ सब अयोध्यावासी परस्पर अनेक प्रेतवार्ता करत रहे ताको छोड़ि दीनवाणी भये अर्थ करुणास्वर फरिफै रोये मरण समयमा औ दाह भूमि में लैजातमों औ दाह होतमों अधिक अधिकतर वियोग मानि राइले की रीति प्रसिद्ध है अथवा अग्नि करी कहे चिता में अग्नि दियो तपते अशुद्धिसों अर्चा कहे देवपूजा मिटी श्री प्रेतचर्चा भई इविशेषः १२ क्रिया | पोडशी आदि भरत नीकी करत भये ताक बादि मुकुद रामचन्द्र के वियोग- रसमें भीनी नवीनी गति कहे दशा घन्कल बसनादि सभी श्री मुकुंदपद- लीनी कहे ज्ञान बुद्धि इति सजी अर्थ पिता की क्रिया पूर्ण कुरि रामचन्द्रके चरणन में मन लगायो गतिपद श्लेष है एकपक्ष दशा जानौ एकपक्ष बुद्धि जानौ "गति स्त्री मार्गदशपोशीने यागाभ्युपाययोरितिमेदिनी" १३ परिक कहे हठ कारकै गगा उतरिकै गुहको लगे कहे शातिसमूह सूधी मार्ग बताइवे के लिये गये जब चित्रकूट देख्यो तब तिनै छोड़ि दियो १४ ।। मदनमोदकछद ॥ सबसारस हंस भये खग खेचर वारिद ज्यों बहु बारन गाजे। वनके नर वानर किन्नर वालक लैनंग ज्यों मुगनायक भाजे ॥ तजि सिद्ध समाधिन केशव दरिष दौरि दरीन में शासन साजे । भूतल भूधर हाले अचानक पाइ भरतके दुंदुभि बाजे १५दोहा॥रामचन्द्र लक्ष्मण स- हित शोभित सीतासंग । केशवदास सहास उठि चढे धर- णिधर भृग १६ लक्ष्मण-मोहनचंद ॥ देखहु भरत चमूसजि पाये। जानि अल हमको उठिनाये। हसत हय बहुगा- रण गाजे । जहें तह दीरघ दुदुभि वाजे १७ तारकलद ॥ गजराजनि ऊपर पाखर सोहैं । अनिसुदर शीशशिरो मन मोह ॥ मनि धूपुर घटन के रख बाज । राडितायुत मानहुँ पारिद गाने १८ पिजयबद॥ युद्ध पाजु भरत चढे धुनि .