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भूकम्प।

मैं बुद्धि को ज़रा स्थिर करके सोचने लगा। इस द्वीप में यदि ऐसे भयङ्कर भूकम्प होते हों तो गुफा या पहाड़ के पास रहना ठीक न होगा। किसी खुले मैदान में चारों ओर दीवार से घेर घार कर घर बनाकर रहना ठीक होगा। जहाँ अभी हूँ यहाँ रहने से किसी न किसी दिन दब कर ज़िन्दगी से हाथ धोने पड़ेंगे।

रहने के लायक स्थान और गृह-निर्माण के लिए जिन चीज़ों की आवश्यकता है उनकी व्यवस्था करने ही में दो दिन बीत गये। दब जाने की आशङ्का से रात में तम्बू के भीतर निश्चिन्त होकर मैं सो न सकता था। किन्तु ऐसे परिश्रम से बनाया हुआ सुरक्षित और सुसज्जित घर छोड़ने को भी जी न चाहता था। घरके माल-असबाब को यहाँ से ढोकर लेजाने ही में फिर कितना समय लगाना और परिश्रम करना होगा। तब जितने दिन तक नया घर खूब मज़बूती के साथ बन कर तैयार न हो ले तब तक जी-जान अर्पण कर मैं ने यहीं रहने का विचार किया।

मैं नया घर बनाने का उपाय सोचने लगा। किन्तु मेरे पास कितने ही आवश्यक हथियार न थे। छोटी छोटी कुल्हाड़ियाँ तो मेरे पास बहुत थीं, पर बड़ी तीन ही थीं। अफ्रिका में छोटी कुल्हाड़ियों का ही विशेष प्रयोजन जान कर मैं उन्हीं को बहुतायत से साथ लाया था, किन्तु सख़्त लकड़ियाँ काटते काटते प्रायः सभी की धार बिगड़ गई थी। मेरे पास सान चढ़ाने की कल थी, पर वह इतनी बड़ी और भारी थी कि उसे एक हाथ से घुमा कर दूसरे हाथ से सान चढ़ाना मेरे सामर्थ्य से बाहर की बात थी। मैं सोचने लगा कि किस युक्ति से इसका प्रतीकार हो सकता है। यहाँ