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भूकम्प।


कर मैं किले के पास गया; परन्तु वहाँ भी पहाड़ के ऊपर से माथे पर पत्थर गिरने की सम्भावना देख अपने घर की दीवार फाँद कर बाहर निकल गया।

धरती पर पाँव रखते ही मैंने समझ लिया कि भयङ्कर भूकम्प हो रहा है। आठ आठ मिनट के अन्तर से तीन बार ऐसे जोर से भूडोल हुआ कि उसके धक्के से पृथ्वी पर के बड़े बड़े मजबूत आलीशान मकान भी भूमिसात् हो जाते। मेरे घर से करीब आध मील पर, समुद्र के कछार में, एक पहाड़ था। उसका शिखर भयानक शब्द के साथ फट कर टूक ट्रक होकर नीचे गिर पड़ा। ऐसा भयानक शब्द मैंने अपनी जिन्दगी में कभी न सुना था। इससे समुद्र का जल भी भयानक रूप से ऊपर की ओर उछलने लगा। ऐसा जान पड़ा मानो स्थल की अपेक्षा भूकम्प का असर विशेष कर पानी पर ही पड़ता है।

ऐसी घटना मैंने आज तक न कभी देखी थी न सुनी। मैं यह भयानक दृश्य देख कर मृतवत् निश्चेष्ट हो रहा। समुद्र में जहाज डोलने से जैसा जी मचलाता है, वैसे ही भूकम्प से भी मेरा जी मचलाने लगा। किन्तु पहाड़ टूटने का शब्द सुनकर मेरा होश ठिकाने आगया। मेरे तम्बू के पीछे का पहाड़ टूटकर कहीं एक ही पल में मेरा सर्वनाश न कर दे, इस आशङ्का ने तो मुझे एकदम हतबुद्धि कर दिया।

तीसरी बार कम्प होने के पीछे जब कुछ देर कम्प न हुआ तब मेरे जी में कुछ साहस हो आया। किन्तु जीते ही कहीं दब न जाऊँ, इस डर से मैं दीवार कूद कर भीतर न जा सका। धैर्य च्युत और किंकर्तव्य-विमूढ़ होकर मैं जमीन पर ज्यों का त्यों बैठा रहा। इतनी देर तक मैं बराबर "हे ईश्वर, हे करुणा-