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क्रूसो का रोजनामचा ।


बना करके उन में बारूद भर दी और पहाड़ के नीचे गढ़ा खोद कर उन्हें अलग अलग गाड़ रक्खा । गढ़ा खोदने का काम मैंने सिर्फ़ बाँस की टोकरी और गैंती से लिया । उस समय मुझे खनती और कुदाल के अभाव का अनुभव हुआ ।

१८ नवम्बर--वन में घूमते फिरते मैंने एक प्रकार का पेड़ देखा । उसकी लकड़ी बहुत मज़बूत और भारी थी । इस कारण ब्रेज़िल में लोग उसे लौहकाष्ठ कहते थे । मैंने उस पेड़ की एक डाल को बड़े बड़े कष्ट से, अपनी कुल्हाड़ी को नष्टप्राय करके, काटा । वह डाल बहुत भारी थी, इससे उसे किसी तरह घसीट कर घर ले आया । रोज़ रोज़ उसे थोड़ा थोड़ा छील छाल कर ठीक कुदाल की तरह बनाया । कसर इतनी ही रही कि उसकी धार को कुदाल की तरह झुका न सका । वह बेंट के साथ सीधी ही रही । किन्तु एक टोकरी की कमी तब भी मुझे बनी ही रही । टोकरी बिनने के काम की सहज ही में जमने येाग्य कोई चीज़ ढूँढ़ने से भी अब तक मुझे न मिली ।

२३ वीं नवम्बर से ३१वीं दिसम्बर तक--मेरे तम्बू के पीछे जो एक खोह थी उसे खेद कर धीरे धीरे उसके द्वार को बढ़ाने तथा उसके बीच की जगह को मैं विस्तृत करने लगा । १० वीं दिसम्बर को खोह की छत एकाएक नीचे धँस गई । यदि मैं उस समय खोह के भीतर रहता तो जीता जागता ही कब्र में गड़ जाता । इस दुर्घटना से मैं बहुत ही डरा । फिर कहीं ऐसी ही घटना न हो जाय, इस कारण छत में नीचे से खम्भा लगा दिया । छत की मिट्टी जो धँस गई थी उसे काट कर बाहर फेंक दिया और छत के नीचे तख़्ता लगा कर खम्भे