करता था तब अच्छे का ही अंश अधिक देखने में आता था ।
दयामय भगवान् की लीला ही ऐसी है । वे संसार में किसी
को निरवच्छिन्न दु:ख नहीं देते ।
इस प्रकार अपने भावी सुख-दुःख की बातों से चित्त को स्थिर कर के मैंने घर बनाने की ओर ध्यान दिया । लकड़ी के घेरे से सटा कर मैंने मिट्टी की दीवार बनाई और पहाड़ से लेकर दीवार तक कड़ी-तख्ते बिछा कर उस पर पत्तों की छावनी कर दी । क्योंकि इस प्रदेश में खूब ज़ोरों की वर्षा होती थी ।
मैंने अपनी सब वस्तुओं को घर में सिलसिलेवार रख दिया । अब जिन आवश्यक वस्तुओं का अभाव था और जिन के बिना कष्ट होता था उन्हें तैयार करने का इरादा किया टेबल और कुरसी के न रहने से मैं अपने जीवन का थोड़ा सा समय भी सुख से न बिता सकता था । न मैं कुछ लिख सकता था, न बैठ कर कुछ पढ़ सकता था । खाने में भी कठिनाई होती थी । मैंने टेबल-कुरसी बनाना आरम्भ किया । मैंने इसके पहले कभी मिस्त्री का काम न किया था, किन्तु परिश्रम और अध्यवसाय के द्वारा मैंने शीघ्र ही उस काम में सफलता प्राप्त की । मेरे पास सब प्रकार के औज़ार न थे, तथापि कुछ हथियारों के बिना ही मैंने बहुत सी चीजें बना लीं । किन्तु इन कामों में मेरा बहुत समय नष्ट होता था और परिश्रम भी अधिक करना पड़ता था । पर उस समय मेरे परिश्रम और समय का मूल्य ही क्या था ? किसी न किसी तरह कुछ परिश्रम और व्यावहारिक कामों के लिए समय का विभाग करना ही पड़ता । जो औज़ार मेरे पास न था उसका काम मैं बुद्धि से लेता था । मान लो; मेरे