इस समय मैंने जहाज़ के अलक्षित होने की चिन्ता छोड़ कर दूसरे काम में मन लगाया ।
क्रूसो का क़िला
मैंने अपने रहने के स्थान को निरापद करने पर पूरा ध्यान दिया । जंगली असभ्य मनुष्य व हिंस्त्र पशु मेरा कोई नुकसान न कर सकें, इसके लिए कैसा घर बनाना चाहिए-- में यही सोचने लगा । एक बार यह सोचता था कि जमीन में सुरंग खोद कर उसी में रहूंगा, फिर जी में होता कि तम्बू के भीतर ही रहूँगा । आख़िर मैंने दोनों तरह से रहने का निश्चय किया ।
मैं उस समय जहाँ था वह जगह रहने के लायक न थी । समुद्र के किनारे की भूमि सील होने के कारण स्वास्थ्यकर नहीं होती ; दूसरे पीने का पानी भी वहाँ अच्छा न था । इसलिए मैं अपने रहने के लिए उपयुक्त स्थान खोजने लगा ।
मैंने सोच कर देखा कि जहाँ मैं रहूँ वहाँ इतनी बातें होनी चाहिएँ । प्रथम जगह स्वास्थ्यकर हो, दूसरे मीठा पानी हो, तीसरे धूप का बचाव हो, चौथे हिंस्त्र मनुष्य और पशुओं से आत्मरक्षा हो सके ; पाँचवें समुद्र का दृश्य हो । यदि जहाज़ को जाते देखूँगा तो किसी तरह भगवान की कृपा से उद्धार हो सकेगा । कारण यह कि मैं तब भी उद्धार की आशा को एकदम छोड़ न बैठा था ।