वस्तुएँ उठा लाया । मैं समूचे जहाज़ को टुकड़े टुकड़े करके
धीरे धीरे ऊपर ले आता, किन्तु इतने में वायु का वेग प्रबल
हो उठा । फिर भी भाटे के समय मैं बारहवीं बार गया ।
जहाज़ की एक दराज़ में अस्तुरा, कैंची, काँटा, छुरी और
कुछ रुपये मिले । रुपये को देख कर मैंने मन ही मन हँस
कर कहा -"बेकार है ! तुम्हारी अपेक्षा मेरे निकट अभी एक
छुरी का मूल्य कहीं बढ़ कर है ।" एक बार मैंने सोचा, रुपया
लेकर क्या करूँगा किन्तु फिर भविष्य की बात सोच कर
उन्हें भी रख लिया । देखा, आकाश में बादल उमड़ रहे हैं ।
मैं एक बेड़ा बनाने की बात सोच रहा था और कुछ कुछ
उसकी आयोजना भी कर रहा था । पन्द्रह मिनट के भीतर
ही पानी बरसने लगा और उलटी हवा बहने लगी, आर्थात्
किनारे से समुद्र की ओर । वायु की प्रतिकूलता में किनारे
तक बेड़ा ले जाना असंभव होगा और ज्वार आने के पहले
स्थल भाग में न लौट जायेंगे तो नीचे के रास्ते से
लौट जाना भी असंभव है, यह सोचकर मैं पानी मैं
उतर पड़ा । देखते ही देखते हवा ने ज़ोर पकड़ा, समुद्र
में तरंग पर तरंग उछलने लगी । मेरी पीठ पर गठरी
बँधी थी, इसलिए मैं बड़ी कठिनता से किसी तरह तैर कर
ऊपर आाया ।
मैंने अपने नव-निर्मित गृह में जाकर बेखटके रात बिताई । सवेरे उठकर देखा, जहाज़ का कहीं नाम-निशान तक नहीं । यह देख कर मैं अत्यन्त विस्मित हुआ । किन्तु मैं इतने दिनों में जहाज़ से चीजें ढो ढो कर ले आया था । और कोई चीज़ लाने को न रह गई थी । यह मेरे लिए विशेष सन्तोष का कारण हुआ ।