पहनने की कुल पोशाकें, जहाज़ का पाल, बिछौना, और
बिछौने की चादरें आदि ले आया । मैं जब जहाज़ पर से
चीजें लाने गया था तब मेरे मन में इस बात का खटका
था कि मेरी अनुपस्थिति में मेरे खाने-पीने की चीजें उठा
कर कोई ले न जाय । किन्तु लौट कर देखा तो मेरे घर में
कोई न आया था, केवल एक वनविड़ाल एक सन्दूक़ के
ऊपर बैठा था । वह मुझे अपनी ओर आते देख दौड़ कर
अलग जा बैठा । वह बड़े निश्चिन्त भाव से बैठ कर मेरे मुँह
की ओर ताकने लगा, मानो वह मेरे साथ परिचय करना
चाहता हो, मैंने उसकी ओर बन्दूक़ दिखलाई किन्तु बन्दूक
की पहचान न रखने के कारण वह ज्यों का त्यों बैठा रहा--
डरा नहीं । तब मैंने उसके आगे एक बिस्कुट फेंक दिया ।
वह अपनी जगह से उठा और उसे सूँघ कर खाने लगा ।
बिस्कुट खाकर वह कृतज्ञता की दृष्टि से प्रसन्नता पूर्वक मेरी
ओर देखने लगा मानो वह और लेना चाहता था । किन्तु
मेरे पास खाने की फ़ालतू सामग्री न थी इसलिए उसके
और न दे सका । तब वह वहाँ से चला गया ।
दूसरी खेप की चीजें ले आने पर मैंने एक तम्बू बनाया । धरती में कई खँटे गाड़ कर उसके ऊपर मैंने पाल फैला कर एक वस्त्रागार बना लिया ।
इसके अनन्तर जो वस्तुएँ धूप में या पानी में बिगड़ने योग्य थीं उन्हें मैंने तम्बू के भीतर रक्खा और सन्दूकों को तम्बू के चारों ओर इस ढँग से रक्खा जिसमें कोई मनुष्य या हिंस्त्र पशु मुझ पर एकाएक आक्रमण न कर सके । फिर तम्बू के द्वार पर कई एक तख़े खड़े कर के एक खाली बक्स सीधा खड़ा कर के टिका दिया । इस प्रकार चारों