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भग्न जहाज़ का दर्शन।


निश्चय न कर सका । मैंने एक बाज़ पक्षी की किस्म की चिड़िया मारी ।

जब से संसार की सृष्टि हुई है तब से, मालूम होता है, इस द्वीप में इसके पूर्व कभी बन्दूक की आवाज़ न हुई थी । बन्दूक की आवाज़ सुनकर चिड़ियाँ विचित्र कलरव करके आकाश में उड़ने लगीं । जिस पक्षी को मैंने मारा था उसका मांस बहुत ख़राब था, खाने के येाग्य नहीं था ।

यह देख सुन कर मैं अपनी वस्तुओं के निकट लौट आया और ऐसी आयेाजना करने लगा जिससे निर्विघ्नपूर्वक रात कटे । मैंने चारों ओर बक्स रख कर उसके ऊपर तखा़ रक्खा और झोपड़े के किस्म का छोटा सा कुटीर बना लिया ।

अब मैंने फिर जहाज़ पर से कुछ वस्तुएँ ले आने का इरादा किया । मैं अपने मन में तर्क-वितर्क करने लगा कि बेड़े को ले जाने में सुविधा है या नहीं, पर केाई सुभीता न देख पड़ा । तब भाट के समय पूर्ववत् नीचे की राह से जाने का ही मैंने निश्चय किया । इस दफ़े मैं अपने बदन के कपड़े उतार कर झोपड़े में रख गया ।

मैंने पहले की तरह जहाज़ में जाकर फिर एक बेड़ा बनाया । पहली बार ठोकर लगने से मैं चेत गया । अब की बार मैंने बहुत बड़ा बेड़ा न बनाया और न उस पर ज़्यादा बोझ ही रक्खा । फिर भी मैं अनेक आवश्यक वस्तुएँ जहाज़ पर से ले आया। चन्द किस्म के हथियार, लोहे की छड़, बन्दूक, गोली-बारूद और सान चढ़ाने की कलं आदि अनेक वस्तुओं का संग्रह कर लिया । इनके अतिरिक्त पुरुषों के