पृष्ठ:राबिन्सन-क्रूसो.djvu/६७

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५४
राबिन्सन क्रूसो ।


निकालीं । मुझे मालूम था कि जहाज़ में तीन पीपे बरूद है । बहुत ढूँढने पर तीनों पीपे बरूद मिली; एक में पानी पैठ चुका था, और दो बच गये थे । उन दोनों पीपों और हथियारों को भी उतार कर बेड़े पर रक्खा । बेड़े पर अब बोझा भरपूर हो गया, यह जान कर मैंने स्थल भाग की ओर लौट जाना चाहा । किन्तु बेड़े को किस तरह किनारे तक ले जाऊँगा, यह सेच कर मैं घबरा गया । मेरे पास खेने की कोई वस्तु न थी । ज़रा तेज़ी के साथ हवा बहने ही से बेड़ा उलट जाता और मेरी सारी आशा मिट्टी में मिल जाती ।

मेरे बेड़े के पार होने की आशा के तीन कारण थे--एक तो समुद्र शान्त और स्थिर था; दूसर, ज्वार आने से जल क्रमशः किनारे की ओर बढ़ रहा था, तीसरे जो कुछ कुछ हवा बह रही थी वह किनारे की ओर जाने ही में सहायता दे रही थी । मैंने दो तीन टूटी पतवारें, खनती ( खनित्र ), कुल्हाड़ी, हथौड़ी आदि उपयोगी वस्तुओं का संग्रह कर साथ में रख लिया । फिर कपार ठोक कर मैं रवाना हुआ । एक मील तक तो रास्ता मज़े में कटा । केवल जिस जगह मैं पहले उतरा था उस जगह से कुछ दूर हटकर बेड़ा बह चला । उससे मैंने समझा कि ज्वार का प्रवाह कहीं से प्रवेश का मार्ग पाकर उसी ओर बढ़ा जा रहा है । शायद मैं किसी खाड़ी या नदी के मुहाने में जा पहुँचूँगा, और वहाँ मेरे उतरने की सुविधा होगी ।

जो मैंने सोचा था वही हुआ । मैंने सामने एक खाड़ी देखी । प्रवाह उसी के भीतर जा रहा है । प्रवाह के बीच में बेड़े को करके मैं खाड़ो के भीतर जाने की चेष्टा करने लगा ।