पृष्ठ:राबिन्सन-क्रूसो.djvu/६६

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५३
भग्न जहाज का दर्शन ।


अभाव ही नई वस्तु के आविष्कार का कारण होता है । मेरी समझ में एक बात आई । जहाज़ के मस्तूल के कितने ही टूटे फूटे छोटे छोटे टुकड़े थे । उनको एकत्र कर मैंने एक बेड़ा बनाया, उस पर दो-तीन तखे़ बिछा दिये । और समय होता तो मैं इतना परिश्रम न कर सकता किन्तु प्राणों की विपत्ति के समय उस घोर परिश्रम से मैं कुछ भी क्लान्त न हुआ । जिन चीजों को मैं ले जाना चाहता था वे हिलकोरे के जल के छींटों से कहीं भीग न जायें, इस लिए मैंने एक उपाय किया । तीन सन्दूको़ के ताले तोड़ डाले और उन्हें खाली करके रस्सी से लटका कर बेड़े पर रख दिया । पहले बक्स में चावल, पनीर सूखा मांस, बिस्कुट आदि खाने-पीने की चीजें भर लीं । जब मैं इन चीजों को ठिकाने के साथ रखने लगा तब देखा कि समुद्र में ज्वार आगया । किनारे की सूखी ज़मीन पर मैं अपने बदन के जो कपड़े लत्ते रख आया था उन्हें वह बहा लेगया । यह देख कर मुझे बड़ा दुःख हुआ । फिर मैं धीरज धर कर जहाज़ में पोशाक ढूँढ़ने लगा । पोशाकें बहुत थीं, मैंने अपनी आवश्यकता भर के कपड़े ले लिये । विशेष कर मुझे उस समय पोशाक की अपेक्षा अस्त्र- शस्त्र अधिक प्रयोजनीय जान पड़े । कारण यह कि बिना उनके स्थल भाग में एक भी काम न चलता । इसलिए मैं हथियारों की खोज करने लगा । बहुत खोजने पर मुझे औज़ारों का बक्स मिल गया । उस समय वह एक जहाज़ भर सोने की अपेक्षा मुझे अधिक मूल्यवान् जान पड़ा । मैंने औजारों से भरा हुआ सन्दूक जहाज़ से उतार कर बेड़े पर रख दिया । इसके बाद मैंने दो पिस्तौल, कुछ गोली-बारूद और बहुत दिन की मोर्चा लगी हुई दो तलवारें खोल