पृष्ठ:राबिन्सन-क्रूसो.djvu/५४

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४५
क्रूसो का जहाज़ डूबना ।


कि नाव अब देर तक ठहरने की नहीं, अवश्य ही हम लोग डूब मरगे । हमारी नाव पर पाल न था, जो होता भी तो क्या कर सकते ? हम लोग मृत्यु को सामने रख किनारे की ओर नाव ले जाने का प्रयत्न करने लगे । बध्यभूमि में जाते समय मारे जाने वाले लोगों की तरह हम लेागों का जीवन भारा क्रान्त हो रहा था । हम लोगों ने इस बात को अच्छी तरह समझ लिया था कि तट के समीप पहुँचते ही एक ही हिलकोरे में हमारी नाव चूर चूर हो जायगी, तो भी हम लोगों को अन्य गति न थी । हवा हम लोगों के किनारे की ओर ठेलती थी और हम लोग स्वयं भी, अपने को मृत्युमुख में डालने के लिए, किनारे ही की तरफ़ नाव को लिये जा रहे थे ।

वहाँ का तट कैसा था, वहाँ पहाड़ था या बालू का ढेर, यह हम लोग न जानते थे, तथापि कुछ आशा थी तो यही कि यदि किसी खाड़ी या नदी के मुहाने में पहुँच सकें तो शायद स्थिर जल मिल भी जाय, किन्तु वैसा कोई लक्षण देख न पड़ता था । हम लोग जितना ही तट के समीप जाने लगे उतना ही समुद्र की अपेक्षा तटस्थ भूमि भयंकर प्रतीत होने लगी ।

करीब डेढ़ मील मार्ग तय करने के बाद, एक पहाड़ के बराबर ऊँची, समुद्र की लहर हम लोगों को पीछे आती दिखाई दी । मानो उसने खुलासा तौर से हम लोगों को मरने की सूचना दे दी । वह तरंग इस प्रखर वेग से हम लोगों के ऊपर आ पड़ी कि नाव उसी घड़ी उलट गई । हम लोग भी परस्पर एक दूसरे से बिछुड़ गये । ईश्वर का नाम लेने के पहले ही हम लेाम समुद्र में डूब गये ।