हम लोग और करते ही क्या ? वैसी दशा में हम लोगों को
एक यही सान्त्वना मिली कि जितने शीघ्र जहाज़ के टूटने
की संभावना थी उतने शीघ्र वह टूटा नहीं और वायु का
वेग भी कुछ कम हो गया ।
किन्तु जहाज़ के टुकड़े टुकड़े न होने और हवा का वेग घट जाने पर भी हम लोगों की विपत्ति कम न हुई । जहाज़ इतने ज़ोर से बालू में धंस गया था कि उसका उद्धार होना कठिन था । हम लोग ज्यों त्यों कर अपने अपने प्राण बचाने का उपाय सोचने लगे । जहाज़ के पीछे एक छोटी नाव बँधी थी किन्तु वह पहली ही झपेट में जहाज़ का धक्का लगने से टूट गई थी । फिर रस्सी से खुल कर वह समुद्र में बह चली । कौन जाने वह डूबी या बची ? इसलिए उससे तो हम लोग सन्तोष ही कर बैठे थे । हमारे जहाज़ के ऊपर एक और नाव थी, परन्तु उसको रक्षा-पूर्वक पानी में उतार लाना विषम समस्या थी । किन्तु वह समय सोच-विचार करने या तर्क वितर्क करने का न था, क्यों कि जहाज़ क्रमशः टूट फूट कर इधर उधर गिर रहा था । इस मुसीबत में जहाज़ का मेट अन्य मल्लाहों की सहायता से नाव को जहाज़ के ऊपर से धीरे धीरे पानी में उतार लाया । हम ग्यारह आदमी राम राम कर उस नाव पर चढ़े । उस उन्मत्त उत्तुंगतरंगवाले समुद्र के हाथ में आत्मसमर्पण कर भगवान के भरोसे नाव को बहा दिया । हवा कम पड़ जाने पर भी समुद्र की लहरें तट पर दूर तक उछल पड़ती थीं ।
इस समय हम लोगों की अवस्था अत्यन्त शोचनीय हो उठी । समुद्र का जल बढ़ कर जिस प्रकार ऊपर की ओर बढ़ता जा रहा था, उससे हम लोगों ने स्पष्ट ही समझ लिया