मेरे भाग्य में तो अनेक दुःख का भोगना लिखा था । फिर
तूफ़ान उठा और हम लोगों के जहाज़ को पच्छिम की ओर
उड़ा ले चला । इस समय समुद्र से बच जाने पर भी हम
लोगों को, किनारे उतर कर,नृशंस लोगों के हाथ से छुटकारा
पाने की आशा न थी । हम लोगों की अक्ल कुछ काम न देती
थी। स्थल भाग में उतरें तो राक्षस हम लोगों को खा ही
डालेंगे । अब अपने देश की ओर भी लौट न सकेंगे ।
ऐसी विपन्न अवस्था में एक दिन सवेरे एक नाविक चिल्ला कर बोला-ठहरो ज़मीन है, ठहरो ज़मीन है" । हम लोग पृथवी के किस अंश में आ गये हैं, यह देखने के लिए कमरे से बाहर आते न आते हम लोगों का जहाज़ बालू के टीले से रगड़ खाकर बैठ गया । जहाज़ की गति एकाएक रुक जाने से कुछ ही देर में समुद्र की लहर ऐसे प्रखर वेग से जहाज़ के ऊपर आ पड़ी कि हम लोगों ने समझा कि इसी दफ़े सब समाप्त हुआ । हम लोग पानी के छींटों और फेन से बचने के लिए झटपट कमरे के भीतर चले गये । जिन लोगों के ऊपर कभी ऐसा संकट नहीं पड़ा है, वे हमारी इस अवस्था या भय का कुछ भी अनुभव न कर सकेंगे । हम लोग कहाँ किस देश में जा पहुँचे हैं, यह मालूम न हुआ । वह स्थान कोई टापू था या कोई देश; वहाँ मनुष्यों की बस्ती थी या जनशून्य स्थान था, इसका भी कुछ निश्चय न हो सका । हवा तब भी जैसी तेज़ बह रही थी, उससे यह आशा न थी कि जहाज़ टूक टूक न होकर क्षण भर भो और बचा रहेगा । हम लोग एक दूसरे का मुँह देखते हुए निरुपाय होकर बैठ रहे और मृत्यु की प्रतीक्षा करने लगे । सभी लोग परलोक-यात्रा के लिए कटिबद्ध हो कर ईश्वर का स्मरण करने लगे । इसके अतिरिक्त