अच्छा नहीं हुआ । किन्तु बीती हुई बात के लिए सोच
करने से फल ही क्या ? मैंने जब कभी अपनी भूल समझी
तब बहुत विलम्ब से; दूसरी बात यह कि तब भूल-संशोधन करने का कोई उपाय भी न रहता था ।
मेरे पिता ने जिस पेशे का अवलम्बन करके घर पर रहने की बात कही थी, अब वही पेशा करने को मैं बाध्य हुआ । उस समय मैंने पिताजी का आश्रय और सदुपदेश त्याग दिया था । इस काम को यदि तभी स्वीकार कर लेता तो अपने देश से पाँच हज़ार मील पर, अपरिचित और असभ्य लोगों के बीच अकेले रह कर, इस प्रकार निःशङ्क भाव से मुसीबतों का सामना न करना पड़ता । यहाँ मेरा कोई संगी साथी न था । मानों मैं किसी स्वजनशून्य देश में निर्वासित हुआ था । इस अवस्था में रहना मुझे विशेष कष्टकर जँचता था । जो हो, इस प्रकार अकेले रहने का अभ्यास हो जाने के पीछे इससे मुझे बहुत लाभ हुआ ।
मैं इँगलैन्ड से अपना संचित रुपया मँगाने की बात सोच रहा था । मेरे उद्धारकर्ता कप्तान साहब ने उसे ला देना स्वीकार कर लिया । मैंने उनकी मारफ़त अपने पुराने मित्र की स्त्री को अपनी अवस्था के सविस्तर समाचार सहित एक पत्र लिख भेजा ।
लिसबन जाकर कप्तान ने एक व्यापारी अँगरेज़ के मारफ़त मेरी चिट्ठी इँगलैन्ड भेज दी । उस समय चिट्ठी बाँटने के लिए हरेक देश में डाक का बन्दोबस्त न था । मेरी मित्र-भार्या ने चिट्ठी पाकर रुपया तो भेज़ ही दिया इसके सिवा उसने अपनी ओर से मेरे उद्धारकारी कतान को एक सुन्दर उपहार भी भेज दिया । कप्तान मेरे रुपये से मेरी