हमें देख सकें, इस आशा से उत्साहित हो कर हम झंडी
उड़ाने लगे । बन्दूक की आवाज़ कर के हमने अपनी विपत्ति
की सूचना दी । यह देख कर वे लोग दया कर के जहाज़ को
हमारी ओर घुमा कर लाने लगे । कोई एक पहर में हम उन
लोगों के पास पहुँच गये ।
उन लोगों ने क्रमशः पोर्तुगीज़, स्पेनिश और फ्राँस की भाषा में हम से परिचय पूछा, पर हम उनकी एक भी भाषा न समझ सके । उस जहाज़ पर एक स्काच नाविक था । उसने जब अँगरेज़ी में हमारा परिचय पूछा तब हमने उससे कहा--हम अँगरेज़ हैं, शैली से मूरों का दासत्व त्याग कर भाग निकले हैं । यह सुन कर उन लोगों ने हमें जहाज़ पर आने की आज्ञा दी और बड़ी दयालुता के साथ हम लोगों को तथा हमारी चीज़-वस्तुओं को अपने जहाज़ पर रख लिया ।
उस दुःसह दुर्दशा और निराशा से उद्धार होने पर हमें जो आनन्द हुआ, उसका वर्णन नहीं हो सकता । इस उपकार की खुशी में हमारे पास जो कुछ था सब हमने जहाज़ के कप्तान को उपहार के तौर पर दे दिया । किन्तु उन्होंने उदारता का परिचय देकर कहा--महाशय, मैं आप का उद्धार करने के बदले आपसे कुछ न लूँग । कौन जानता है, कभी मेरी भी अवस्था आप ही की सी हो जाय । यही सोच कर मैंने आपका उद्धार किया है । हम लोग ब्रेज़िल जा रहे हैं । आप भी अपने देश से बहुत दूर जा पहुँचेगे । आपके पास से यदि मैं आपका सर्वस्व ले लूँ तो आप वहाँ जाकर क्या खाकर प्राण धारण करेंगे । तब, जिस प्राण की आज मैंने रक्षा की है उसी के विनाश का क्या मैं फिर कारण बनूँगा ? मैं आपको यों ही ब्रेज़िल पहुँचा दूँगा और आपकी जितनी चीजें हैं, सब आपको