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क्रूसो का स्थलमार्ग से स्वदेश को लौटना।


एक जगह स्थिर होकर रहने ही में सुख है। हाँ, यदि आप अनुग्रह करना चाहते है तो मेरे पुत्र को इस देश से मुक्त कर दें। यह मुझ पर ही एहसान होगा। इससे मै विशेष उपकृत हूँगा।

जून का प्रारम्भ होते ही मैं रवाना हुआ। मेरे साथ कुल बतीस ऊँट-घोड़े थे। और सब साथी, जो जहाँ के थे, क्रम क्रम से चले गये। उतने बड़े दल में एक में ही यात्री बच रहा था। छद्मवेशी रूसो सज्जन और उनका नौकर हमारे नये साथी हुए। हम लोग रेगिस्तान पार हुए। तदनन्तर हम प्रधान-पथ छोड़ कर टेढ़े मेढ़े रास्ते से चलने लगे। किसी शहर में जाते भी न थे। क्या जाने, मेरे साथी छद्मवेशी भद्र महाशय को कोई पहचान ले।

क्रमानुगत हम लोगों ने यूरोप देश में प्रवेश किया। एक जंगल के भीतर होकर जाते समय हम लोगों का जीवन-धन सब लुटेरों के हाथ जाते जाते बचा। ये लोग भी तातारी घुड़सवार लुटेरे थे। गिनती में पच्चीस से कम न थे। वे हम लोगों पर आक्रमण करने की घात में लगे। किन्तु वे लोग जिस तरफ़ जाते थे उसी तरफ़ हम लोग भी जाते थे। इस तरह हम लोगों ने बड़ी देर तक उन्हें घुमा-फिरा कर हैरान किया। रात होने पर वे लोग चले गये । हम लोगों ने भी एक झाड़ी की आड़ में जाकर आश्रय लिया।

कुछ ही देर बाद हम ने देखा कि क़रीब अस्सी डाकू हम लोगों का माल-असबाब लूटने के लिए चले आ रहे हैं। निकट आते ही उनको हम लोगों ने गोली मारी। उससे बहुत लोग मरे और घायल हुए। और लोग डर कर वहाँ से दूर भाग गये। हम लोग उनके कई घोड़े पकड़ लाये।