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क्रूसो का स्थलमार्ग से स्वदेश को लौटना।


थी और कोई अस्त्र न था। हम तीनों पैदल आदमी उन घुड़सवारों का कर ही क्या सकते थे? तथापि मुझको तलवार निकालते देख पहला तातारी ठिठक कर खड़ा हो रहा। वे लोग ऐसे भीरु थे। किन्तु दूसरे ने पीछे से आकर मेरे सिर पर लाठी मारी। मैं बेहोश होकर गिर पड़ा। दैवयोग से वृद्ध के पाकेट में एक पिस्तौल थी। उन्होंने झट पिस्तौल निकाल गोली भर कर उस तातार डाकू को मार डाला, और जिस तातारी ने हम लोगों पर पहले आक्रमण किया था उस पर तलवार चलाई। तलवार उस तातारी को न लग कर घोड़े के कान को काटती हुई उसको गर्दन में घुस गई। इससे वह जख्मी होकर डर से हाँफता हुआ सवार को लेकर बड़े वेग से भाग चला। बहुत दूर जाकर उसने पिछली टाँगों के बल खड़े होकर सवार को गिरा दिया और आप भी उस पर गिर पड़ा। तीसरा तातारी डाकू अपने को असहाय देख वहाँ से भाग निकला।

इतनी देर बाद मुझे कुछ होश हुआ। जान पड़ा, जैसे गाढ़ी नींद से सोकर उठा हूँ। फिर सिर में वेदना मालूम होने पर मैंने हाथ से टटोल कर देखा तो हाथ में लोहू लग गया। तब मुझे सब बात याद हो आई। मैं झट उछल कर खड़ा हुआ और तलवार की मूठ पकड़ी, परन्तु तब वहाँ कोई शत्रु न था। मुझको खड़े होते देख वृद्ध पोर्चुगीज़ ने दौड़ कर मुझे छाती से लगा लिया। फिर वह देखने लगा कि मेरे सिर में कैसी चोट लगी है। चोट गहरी न थी। दो ही तीन दिन में ज़ख्म भर आया। ऊँट के बदले मुझे तातार का घोड़ा मिला। खैर, यही सही।