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राबिन्सन क्रूसो।

सचमुच में ख़बर बहुत अच्छी थी। हम लोग जाने को राजी हुए। हम लोग राह-खर्च देकर वृद्ध को उनके देश पहुँचा देंगे, इस शर्त पर उन्हें भी साथ ले लिया।



क्रूसो का स्थलमार्ग से स्वदेश को लौटना

हम लोग फ़रवरी महीने के पहले ही पेकिन से रवाना हुए। हमारे साथ अठारह ऊँट और आठ घोड़े थे। रेशमी कपड़े, छींट, लवङ्ग, जायफल, ज़रीदार वस्त्र और चाय आदि अनेक प्रकार की सामग्री ऊँटों और घोड़ों पर लाद ली थी।

हम लोगों का दल एक छोटी मोटी फ़ौज के बराबर था। सब मिलाकर एक सौ बीस आदमी थे। तीन चार सौ घोड़े थे। और भी कुछ चौपाये थे, जिन पर चीजें लदी थीं और आदमी भी सवार थे। सभी लोग अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित थे। कोई भी हथियार से खाली न था। रास्ते में तातारी डाकुओं का बेहद भय था।

इस दल में सभी जातियों के मनुष्य थे। यूरोप के कई देशों के यहूदी, चीनी तथा और भी कितनी ही जातियों के लोग थे।

हम लोगों के साथ पाँच पथ-प्रदर्शक थे। सभी लोगों ने चन्दा कर के उनको कुछ रुपया दे दिया था। उसी रुपये से रास्ते में साईसों के लिये खाना और पशुओं के लिए दाना-घास खरीदी जाती थी। दल में एक व्यक्ति इसलिए प्रधान मुकर्रर किया गया था कि मार्ग में उसी की आज्ञा के अनुसार सबको चलना होगा।

रास्ते में दोनों तरफ़ कुम्हारों की बस्ती थी। वे लोग चीनी मिट्टी के बर्तन बनाते थे। रास्ते में एक मकान देखा। उसकी दीवार और छत आदि सभी चीनी मिट्टी की थी।