आफ़त लगी ही रहेगी। क्योंकि सभी इस जहाज़ पर नाराज़ हैं। वह मनुष्य भीतर से कितना ही निर्दोषी और सज्जन क्यों न होगा पर पोर्चुगीज़ों और अँगरेज़ों के जहाज़ से उसकी रक्षा न होगी।
वृद्ध ने कहा-मैं उसका भी प्रबन्ध कर दूँगा। बहुत कप्तानों के साथ मेरा परिचय है। वे लोग जब इस रास्ते से जायँगे तब मैं उन सबों से भेट करके सब वृत्तान्त समझा कर कह दूँगा।
हम लोगों ने नानकुईन-उपसागर के प्रान्तीय क्युच्याँग बन्दर में जाकर जहाज़ लगाया। आफ़त की जड़ जहाज़ से उतर कर धरती में पाँव रखते ही हम लोगों की जान में जान आई। यदि जहाज़ मिट्टी मोल भी बिक जायगा तो हम लोग एक बार सिर न हिलावेंगे। रात-दिन भयभीत बना रहना कैसी विडम्बना है! आँखों में नींद नहीं, चित्त में चैन नहीं, खाने-पीने की इच्छा नहीं। केवल मृत्यु और कलङ्क की विभीषिका को सामने रख कर समय बिताना बड़ा कष्टकर है। मैं इस बुढ़ापे में चोरी की इल्लत में पकड़ा जाकर विदेश में फाँसी से प्राण गवाँने बैठा था। किन्तु मैं किसी भाँति यह अपमानजनक मृत्यु सह्य नहीं कर सकता। मैं शत्रुओं के साथ प्राणपण से युद्ध करता। यदि युद्ध में जीत न सकता तो जहाज़ को बारूद से उड़ा देता। किसीको विजय-जनित अहङ्कार करने का अवकाश न देता। जब मैं इन बातों को सोचता था तब मेरा दिमाग गरम हो उठता था। एक दिन ऊँघते ऊँघते मैने जहाज़ के तख्ते पर ऐसे ज़ोर से घूँसा मारा कि हाथ में चोट लगने से लहू बह निकला।