पृष्ठ:राबिन्सन-क्रूसो.djvu/३८६

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३६१
क्रूसो का भागना।


न हो कर तुरन्त बोल उठा-"तब तो आप लोगों का निम्पो से होकर नदी के रास्ते जाना ही ठीक होगा।" मैंने क्रुद्ध हो कर कहा-"हम लोग अभी पेकिन न जायँगे। हम पहले नानकुइन जायँगे, तब वहाँ से पेकिन। साफ़ साफ़ कहो, हम लोगों को तुम नानकुइन ले जा सकते हो या नहीं।" उसने कहा-"क्यों न ले जा सकूँगा। यही तो कुछ देर पहले एक बहुत बड़ा पोर्चुगीज़ जहाज़ उस ओर गया है।" पोर्चुगीज़ जहाज़ का नाम सुनते ही हृदय काँप उठा। बूढ़े ने पोर्चुगीज़ जहाज़ के नाम से मुझको चौंकते देख कर कहा-पोर्चुगीज़ जहाज़ से अभी आपको डरने का कोई कारण नहीं। उन लोगों के साथ आपके देशवासियों की तो अभी कोई दुश्मनी नहीं है?

मैंने कहा-"सच है, दुश्मनी तो नहीं है, किन्तु मनुष्य किसको किस नजर से देखते हैं यह बात पहले नहीं जानी जा सकती। इसी से अपरिचित लोगों से दबना पड़ता है।" बूढ़े ने कहा-"आप सीधे सादे व्यवसायी है, इसमें डरने की क्या बात है? आप लोग लुटेरे तो हैं नहीं।" लुटेरे का नाम सुनते ही मेरा मुँह लज्जा से लाल हो उठा। वृद्ध ने मेरे चेहरे पर लक्ष्य देकर कहा-"महाशय, मैं देख रहा हूँ कि आपके मन में कुछ गोलमाल है। खैर, आपका जहाँ जी चाहे जहाज़ ले चलें। मैं यथासाध्य आपका उपकार करूँगा।" मैंने बात टालने के इरादे से कहा-"महाशय! आपका अनुमान बहुत ठीक है, मैं इस बात का अभी तक कोई निश्चय नहीं कर सका कि इस जहाज को कहाँ ले जाऊँ। आपके मुँह से लुटेरे का नाम सुन कर मुझे और भी डर लग रहा है।" वृद्ध ने कहा-आप क्यों डरते हैं? इस तरफ़ समुद्र में लुटेरे नहीं रहते। क़रीब एक महीना हुआ, स्याम की खाड़ी में