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क्रूसो का भागना ।


यह प्रदेश बिलकुल जनशून्य था । मूर जाति के भय से हबशी लोग इस देश को छोड़ कर दक्खिन ओर चले गये हैं । इस देश को ऊसर और हिंस्त्र जन्तुओं से भरा जान कर मूर लोग भी इस पर अपना अधिकार नहीं जमाते । इसलिए यह देश मनुष्यों से बिलकुल खाली पड़ा था ।

हम लोग यहाँ से बिदा होकर पानी लेने के लिए कई बार किनारे की सूखी भूमि में उतरे थे । एक दिन सवेरे एक जगह नाव लगा कर देखा, एक बहुत बड़ा सिंह एक पहाड़ की गुफा में पड़ा सो रहा है । हमारे साथ तीन बन्दूक़ें थीं । हमने तीनों में अच्छी तरह गोली बारूद भर दी । तदनन्तर सिंह के मस्तक को लक्ष्य करके गोली चलाई । सिंह अगले पाँघ का पंजा मुंह पर रक्खे सो रहा था । इससे गोली उसके माथे में नहीं पाँव में लगी । सिंह गरज कर जाग उठा और दौड़ कर ज्यों ही चलना चाहा त्यों ही लड़खड़ा कर गिर पड़ा । उसके घुटने की हड्डी टूट गई थी । वह तीन पाँवों के बल से फिर सँभल कर उठा । भयंकर गर्जन कर के उसने भागना चाहा । हमने दूसरी बन्दूक़ उठा कर उसके सिर को लक्ष्य कर फिर गोली चलाई । गोली की चोट खाते ही वह आर्तनाद कर के गिर पड़ा । और चटपटाने लगा । यह देखकर मैं खुश हुआ । इकजूरी साहस कर के, हाथ में बन्दूक़ लेकर, नाव से उतर गया । उसने सिंह के पास जाकर उसके माथे पर बन्दूक की नली रखकर गोली दाग दी । सिंह मर कर स्थिर हो गया ।

यह एक भारी शिकार हाथ लगा, इस में सन्देह नहीं । किन्तु यह खाद्य न था । निष्प्रयोजन तीन आवाजों की गोली-बारूद खर्च करने से हमारा मन बहुत उदास हो गया । हम