क्यों नहीं कह डालते कि क्या मामला है? हम लोग न चोर हैं न डाकू हैं, तब हम लोगों को किसीसे डरने की क्या वजह हो सकती है?" उसने कहा-"मैं देखता हूँ कि आप फायदे की बात न सुनेगे, परामर्श की बात पर ध्यान न देंगे। यदि मैं दूसरे किसीका इतना बड़ा उपकार करता तो वह आपकी अपेक्षा मेरे साथ अवश्य ही अच्छा व्यवहार करता। ठहरिए, यदि आप इसी घड़ी जहाज़ को यहाँ से अन्यत्र न ले जायँगे तो आप ही इसका मज़ा चखेंगे। जब वे लोग आपको लुटेरा समझ कर फाँसी देंगे तब आपको मेरी कृतज्ञता की बात सूझेगी।" मैंने कहा-"जो व्यक्ति मेरे उपकार की चेष्टा कर रहे हैं उनके निकट मैं कभी अकृतज्ञ नहीं हो सकता। जब आप कह रहे हैं कि मेरी विपत्ति आसन्न है तब मैं अभी यहाँ से भागता हूँ। किन्तु भाई साहब, क्या आप भय का कारण कुछ खुलासा करके नहीं बतला सकते?" उसने कहा-"मुखतसर बात इतनी ही है कि तुम यह जहाज़ लेकर सुमात्रा टापू गये थे। तुम्हारे कप्तान और कई एक नाविक वहाँ मारे गये। इसके बाद तुम जहाज़ लेकर वहाँ से चम्पत हुए। इस समय तुम लोग उद्दण्ड होकर समुद्र में जहाज़ पकड़ते फिरते हो। यह ख़बर तुम्हारे निकट नई नहीं है। यह मैं अच्छी तरह जानता हूँ, किन्तु अब किसी बड़े जहाज के हाथ पड़ जाओगे तो तुम्हारा उद्धार होना कठिन है।" मैंने आगे-पीछे की बातें सोचकर कहा-"भाई, इतनी देर बाद तुमने सब बाते सीधे तौर से कह सुनाई। यद्यपि हम लोगों ने यह जहाज जैसा आप समझते हैं उस तरह नहीं लिया है तो भी आपके कथनानुसार हम लोग अभी यहाँ से भागते हैं। किन्तु मेरे
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राबिन्सन क्रूसो।