नीय हो उठती। भतीजे ने मुझसे नाविकों के असहनीय संकल्प की बात कही। मैंने उससे कहा कि इसके लिए चिन्ता करने से कोई फल न होगा। मेरा माल-असबाब और कुछ रुपया मुझको देते जाओ, तो मैं किसी तरह देश लौट जाऊँगा।
इस बात से मेरा भतीजा अत्यन्त दुखी हुआ किन्तु इस प्रस्ताव को स्वीकार करने के सिवा और उपाय ही क्या था? उसने जहाज़ पर लौट कर नाविकों से कहा कि मेरे चचा अब इस जहाज़ पर न जायँगे तब सभी नाविक अपने अपने काम पर गये। मेरे भतीजे ने मेरी सब चीजें जहाज़ पर से उतार दी। मैं अपने देश से बहुत दूर अपरिचित देश में निर्वासित हुआ।
मैं छाती को पत्थर सी किये खड़ा खड़ा देखता रहा। सचमुच ही जहाज़ मुझको छोड़ पाल तान कर चल दिया। मेरा भतीजा मेरे आश्वासन के लिए एक किरानी और अपने एक नौकर को मेरे पास छोड़ गया। मैंने एक अँगरेज़ रमणी के घर में डेरा किया। वहाँ कई एक फ़्रांसदेशी, यहूदी, और एक व्यवसायी अँगरेज़ भी पहले ही से ठहरा था। यहाँ सुख खच्छन्द से मैंने नौ दस महीने बिताये। मेरे पास काफ़ी रुपये थे और कुछ वाणिज्य की वस्तुएँ भी थीं। उन वस्तुओं को बेच कर मैंने अच्छे हीरे मोल लिये। अब में बेखौफ़ अपने सर्वस्व को साथ ले कर देश लौट जा सकूँगा।
क्रूसो का वाणिज्य
मेरा बहुत समय भारतवर्ष के पूर्वी भाग बङ्गाल में ही बीत गया। देश लौटने के जितने उपाय मुझे बतलाये जाते थे