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मदागास्कार टापू में हत्याकाण्ड।


के विध्वंस की बात पढ़ी है, एक ही दिन में सहस्र सहस्र नर-नारी और बाल-वृद्धों के विनाश का वृत्तान्त सुना है किन्तु मेरी धारणा में न था कि वह व्यापार इतना घृणोत्पादक और बीभत्स होता है।

हम लोग शहर में जा पहुँचे। किन्तु आग को चीर कर किसका सामर्थ्य था जो रास्ते पर चलता? कितने ही घर जल कर खाक हो गये थे। उस भस्म-राशि में और उसके पास कितने ही जले और अस्त्र-हत लोग इधर उधर मरे पड़े थे। चारों ओर हाहाकार मच रहा था। हम लोगों के साथ के आदमी इतने बड़े शैतान और राक्षस होंगे, यह विश्वास के बाहर की बात थी। जो लोग ऐसा अमानुषी काम कर सकते हैं उनका उचित दण्ड घोर यन्त्रणामय मृत्यु के सिवा और हो ही क्या सकता है?

हम लोग धीरे धीरे आगे बढ़ने लगे। जहाँ आग खूब तेजी पर थी वहाँ जाकर देखा कि तीन स्त्रियाँ बिलकुल नङ्ग-धड़ङ्ग इस प्रकार दौड़ी हुई आ रही थीं जैसे उड़ती आती हों और उनके पीछे वहीं के सोलह सत्रह पुरुष उसी तरह भय से व्याकुल होकर बेतहाशा दौड़े आ रहे थे। तीन नृशंस अँगरेज उनका पीछा कर रहे थे। जब वे उन भगोड़े स्त्री-पुरुषों को न पकड़ सके तब उन पर गोली चलाई। हम लोगों की आँखों के सामने ही एक आदमी गोली की चोट खा कर गिर पड़ा। बचे हुए स्त्री-पुरुषों ने दौड़ कर आते आते सामने हम लोगों को देखा। वे लोग हम लोगों को भी हत्याकारी शत्रु समझ कर चिल्ला उठे। पीछे शत्रु, आगे शत्रु; वे लोग भागे तो किधर? स्त्रियाँ ऐसी भयभीत हुईं कि उनमें दो मूर्च्छित होकर गिर पड़ी।

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