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राबिन्सन क्रूसो।


नाविकों को साथ ले एक नाव पर सवार हो स्वयं किनारे आ पहुँचा।

मेरा भतीजा (कप्तान) किनारे आकर और दूसरी नाव पर मुझे देख कर बहुत खुश हुआ, किन्तु और लोगों के लिए उसको कम उत्कण्ठा न हुई। तब भी आग वैसे ही धधक रही थी और शोर-गुल भी उसी तरह हो रहा था। ऐसी अवस्था में कुतूहलाक्रान्त चित्त को रोक चुप साध कर बैठ रहना एक प्रकार से असंभव था। भतीजे ने कहा-"जो भाग्य में बदा होगा सो होगा, एक बार वहाँ जाकर देखूँ तो क्या हाल है"। मैं उसे समझाने लगा कि "ऐसा मत करो, क्योंकि जहाज का भला-बुरा तुम्हारे ही ऊपर निर्भर है। इसलिए उस भयङ्कर स्थान में तुम्हारा जाना उचित नहीं, बल्कि कहो तो दो आदमी साथ लेकर मैं जाता हूँ और देख आता हूँ कि क्या मामला है।" मेरा सब समझाना वृथा हुआ। कितना ही मना किया पर उसने न माना। वह चला ही गया। मैं करता ही क्या? मैं अब हाथ पाँव मोड़ कर चुपचाप बैठा न रह सका। मैं भी उसके साथ साथ चला। जहाज के पैंसठ नाविकों में दो व्यक्ति मारे गये, और कुछ पहले ही शहर देखने जा चुके थे, कुछ मेरे साथ चले। सिर्फ सोलह आदमी जहाज़ पर रह गये।

हम लोग इतनी तेजी से दौड़ चले कि धरती पर प्रायः पैर न लगते थे। आग को लक्ष्य कर हम लोग उसी तरफ़ दौड़ चले। उस समय रास्ते का खयाल किसीको थोड़े ही था। समीप जाकर कासर नर-नारियों का आर्तनाद सुन कर हम लोगों का हृदय काँप उठा। इतिहास में कितने ही नगरों